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निरुक्त कोश
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७४८. तिलोगदंसि (त्रिलोकदशिन्) त्रीन् लोकान् पश्यन्तीति त्रिलोकदर्शिनः। (सूचू १ पृ २३३)
जो तीनों लोकों को देखते हैं, वे त्रिलोकदर्शी हैं । ७४६. तिव्व (त्रिप्र) त्रिभिस्तापयतीति त्रिप्रं।
(सूचू १ पृ २५) जो (मन, वचन और शरीर) तीनों को तप्त करता है,
वह त्रिप्र/कर्म है। ७५०. तीय (अतोत)
अति-अतिशयेनेतो-गतोऽतीतः। (स्थाटी प १५२)
जो सदा के लिए बीत जाता है, वह अतीत है। ७५१. तीर (तीर) तिष्ठति तमिति तोरं ।
(आचू पृ.६९) जहां ठहरा जाता है, वह तीर/तट है । तरंति तेणेति तीरम् ।
(उचू पृ २१५) जहां से तरा जाये, वह तीर है। ७५२. तीरट्टि (तीरार्थिन्)
तीरं अत्थयति-मग्गतीति तीरही। (दअचू पृ २३४) तीरेण जस्स अट्ठो स भवति तोरट्ठी। (सूचू २ पृ ३३५)
जो तीर तट पर जाना चाहता है, वह तीरार्थी है । तोरे ठितो तोरट्ठी।
(दअचू पृ २३४) जो तीर/तट पर स्थित है, वह तीरार्थी है। ७५३. तुद (तुद) तुदंतीति तुदाः।
(सूचू १ पृ १३५) जो व्यथित करते हैं, वे तुद/चाबुक हैं। .........-- १. 'तीर' का अन्य निरुक्ततीरयति समापयति नद्यादिकमिति तीरम् । (शब्द २ पृ६२५) नदी आदि को जहां तैर कर समाप्त किया जाता है, वह तीर है। जहां नदी आदि की सीमा समाप्त हो जाती है, वह तीर है।
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