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निरुक्त कोश ८५१. धण्ण (धन्य) णाणदंसणचरित्ताणि धणं एतेण धणेण धण्णो।
(आवचू १ पृ ५३८) जो ज्ञान, दर्शन और चरित्र रूप धन से संपन्न है, वह धन्य
८५२. धण्णा (धन्या) धनमर्हति लप्स्यते वा या सा धन्या । (अंतटी प ८)
जो धन/प्रशंसा के योग्य है, प्रशंसा को प्राप्त करती है, वह धन्या है। ८५३. धम्म (धर्म)
धारेति संसारे पडमाणमिति धम्मो।' (दअचू पृ १) धारेति दुग्गतिमहापडणे पतंत मिति धम्मो। (दअचू पृ. ६)
जो संसार अथवा दुर्गति में पड़ती हुई आत्मा को धारण करता है/बचाता है, वह धर्म है। ८५४. धम्मक्खाइ (धर्माख्यायिन्) धर्ममाख्यान्ति भव्यानां प्रतिपादयन्तीति धर्माख्यायिनः ।
(औटी पृ २०२) जो धर्म का आख्यान/प्रतिपादन करते हैं, वे धर्माख्यायी हैं । ८५५. धम्मक्खाति (धर्मख्याति) धर्माद् वा ख्यातिः प्रसिद्धिर्येषां ते धर्मख्यातयः।
(औटी पृ २०२) जो धर्म से ख्याति प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं, वे धर्मख्याति हैं । १. (क) दुर्गतिप्रसृतान् जीवान् यस्माद् धारयते ततः । धत्ते चैतान् शुभ स्थाने, तस्माद् धर्म इति स्मृतः ।।
(आवहाटी २ पृ १६८) (ख) 'धर्म' का अन्य निरुक्तध्रियते पुण्यात्मभिरिति धर्मः।
(शब्द २ पृ ७८३) पवित्र आत्मा जिसे धारण करती है, वह धर्म है।
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