________________
निरुक्त कोश
८५६. धम्मत्थकाम ( धर्मार्थकाम )
धम्मस्स अत्थं कामयंतीति धम्मत्थकामा ।
( अचू पृ १३९ ) धम्मस्स फलं मोक्खो, सो चेव अत्थो । तं अत्थं कामेन्ति धम्मत्थकामा । (दअचू पृ १४३) जो धर्म के अर्थ / मोक्ष की कामना करते हैं, वे धर्मार्थकाम /
मुमुक्षु हैं।
८५७. धम्मद ( धर्मद)
धर्म - चारित्ररूपं ददतीति धर्मदाः ।
जो धर्म को प्रदान करते हैं, वे
८५८. धम्मदेस्य ( धर्मदेशक )
धर्मं दिशन्तीति धर्मदेशकाः ।
जो धर्म की देशना देते हैं, वे धर्मदेशक / तीर्थंकर हैं ।
८५. धम्मपण्णत्त (धर्मप्रज्ञप्ति )
८६०. धम्मपलज्जण (धर्मप्ररज्यन )
(जीटी प २५६ ) धर्मदाता / तीर्थंकर हैं ।
धम्मो पण्णविज्जए जाए सा धम्मपण्णत्ती । '
( दअचू पृ ७३ )
जिसमें धर्म की प्रज्ञापना / प्ररूपणा है, वह धर्मप्रज्ञप्ति / दशवै: कालिक सूत्र का चतुर्थ अध्ययन है ।
धर्मे प्ररज्यन्ते – आसज्यन्ते ये ते धर्म प्ररज्यनाः ।
८६१. धम्मपलोइय (धर्मप्रलोकिन् )
Jain Education International
१६५
( जीटी प २५६ )
जिनका धर्म के प्रति अनुराग है, वे धर्मप्ररज्यन हैं ।
( औटी पृ २०२ )
धर्मं प्रलोकयन्ति - उपादेयतया प्रेक्षन्ते पाषण्डिषु वा गवेषयन्तीति धर्मप्रलोकिनः । (ओटी पृ २०२ ) धर्म का प्रलोकन / गवेषण करते हैं, वे धर्म प्रलोकी हैं ।
१. धम्मस्स फलं मोक्खो .......
तमभिपाया साहू तम्हा धम्मत्थकामति ॥ ( दनि १६७ )
२. आयप्पवायपुव्वा णिज्जूढा होइ धम्मपण्णत्ती (दनि १६ )
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org