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८३३. दुव्विसोज्झ (दुर्विशोध्य )
दुःखेन विशोधयितुं - निर्मलतां नेतुं शक्यो दुर्विशोध्यः ।
कठिनाई से शुद्ध / निर्मल होता है, वह दुर्विशोध्य है । ८३४. दुसन्नप्प (दुःसंज्ञाप्य )
दुःखेन कृच्छेण संज्ञाप्यन्ते - प्रज्ञाप्यन्ते - बोध्यन्त दुःसंज्ञाप्याः ।
८३६. दुहिल ( दुहिल) दुहसीलो दुहिलो |
जो द्रोह करता है, वह दुहिल है ।
जिसको कठिनाई से समझाया जाता है, वह दुःसंज्ञाप्य है । ८३५. दुस्संबोध ( दुस्सम्बोध)
दुःखेन सम्बोध्यते - धर्मचरणप्रतिपत्ति कार्यत इति दुस्सम्बोधः । ( आटी प ३५ )
कठिनाई से संबुद्ध होता है, वह दुस्संबोध है ।
८३७. दुइज्ज (दु )
दोसु सिसिरगिम्हेसु रीतिज्जति दूइज्जति ।
वह इज्जण / गमन है ।
दोसु वा पाएसु रोइज्जति दूइज्जति ।
जो दो ऋतुओं / शिशिर और ग्रीष्म में आना-जाना होता है,
दो पैरों से गमन करना / पैदल चलना
८३८. देव (देव)
निरुक्त कोश
दीवं आगासं तंमि आगासे जे वसंति ते देवा ।
जो दिव/ आकाश में रहते हैं, वे देव हैं ।
दीव्यन्तीति देवाः ।
जो दीप्त हैं, वे देव हैं ।
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( उशाटी प ५०२ )
इति
( स्थाटी प १६० )
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( उच्च् पृ १६६ )
( निचू ३ पृ १२१ ) दूइज्जण / गमन है ।
( दजिचू पृ १५ )
(टीप २१ )
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