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निरुक्त कोश ८२६. दुरहि (दुरभि) दौर्मुख्यकृद् दुरभिः ।
(अनुद्वाहाटी प ६०) जो मुख को दुर्/विकृत बना देती है, वह दुरभि/दुर्गंध
है।
८२७. दुरारुह (दुरारोह)
दुःखेनारुह्यते-अध्यास्यत इति दुरारोहम्। (उशाटी प ५१०)
जहां कठिनाई से आरोहण किया जाता है, वह दुरारोह है। ८२८. दुरासय (दुराश्रय) बुक्खमाश्रीयते दुरासतं ।
(दअचू पृ १५०) जिसे अपने आश्रित करना दुष्कर है, वह दुराश्रय/अग्नि
८२६. दुरुत्तर (दुरुत्तर) दुक्खं उत्तरिज्जति दुरुत्तरम् ।
(उचू पृ १३०) जो कठिनाई से पार किया जाता है, वह दुरुत्तर है । ८३०. दुरवणीय (दुरुपनीत) दुष्टमुपनीतं -निगमितं योजितमस्मिन्निति दुरुपनीतम् ।
(स्थाटी प २५०) जिसका निगमन/उपसंहार उचित रूप में उपनीत/योजित नहीं होता, वह दुरुपनीत है। ८३१. दुरूवभक्खि ('दुरूव' भक्षिन्)
दुरूवं भक्खयन्तीति दुस्वभक्खी। (सूचू १ पृ १३१)
जो दुम्व/मल-मूत्र का भक्षण करते हैं, वे दुरूवभक्षी/
नरयिक है। ८३२. दुल्लह (दुर्लभ) दुःखेन लभ्यत इति दुर्लभः ।
(उचू पृ ६८) जो कठिनाई से प्राप्त होता है, वह दुर्लभ है।
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