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निरुक्त कोश
स्त्याना-पिण्डीभूता ऋद्धिः-आत्मशक्तिरूपा यस्यां स्वापावस्थायां सा स्त्यानद्धिः।
(प्रज्ञाटी प ४६७) जिसमें चित्त अत्यन्त स्त्यान/जड़ीभूत हो जाता है, वह स्त्यानद्धि/निद्रा का एक प्रकार है। ७६७. थेर (स्थविर) सीदतः साधून स्थिरीकरोतीति स्थविरः। (प्रसाटी प २४)
जो संयम में अस्थिर व्यक्ति को स्थिर करता है, वह स्थविर
७६८. दंड (दण्ड) दम्मन्ति जेण सो दंडो।
(आचू पृ १८६) जिससे दमन/निग्रह किया जाता है, वह दण्ड/शस्त्र है। दण्ड्यतेऽनेनेति दण्डः।
(उचू पृ २०७) जो दंडित करता है, वह दंड है। ७६६. दंड (दण्ड)
दण्ड्यन्ते-व्यापाद्यन्ते प्राणिनो येन स दण्डः : (आटी प ११४)
___ जिससे प्राणियों को दंडित/प्राणच्युत किया जाता है, वह
दंड/हिंसा है। ७७०. दंडभीरु (दण्डभोरु) डंडाओ बीभेति डंडभीरू ।
(आचू पृ २६०) जो दंड/हिंसा से भी/भयभीत होता है, वह दंडभीरु/मुनि
७७१. दंत (दन्त) दस्यते एभिरिति दन्ताः ।
(उचू पृ २०८) जो काटते हैं, वे दांत हैं। १. 'दंत' का अन्य निरुक्त
दाम्यन्त्यम्लभक्षणात् दन्ताः। (अचि पृ १३२) जो अम्ल द्रव्य के भक्षण से बेकार हो जाते हैं, वे दांत हैं ।
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