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निरक्त कोश
६२८. गरग (नरक) नीयंते तस्मिन् पापकर्माण इति नरकाः।
पापी जिसमें ले जाए जाते हैं, वे नरक हैं। न रमन्ति वा तस्मिन्निति नरकाः। (सूचू १ पृ १२६)
जहां प्राणी आनन्द का अनुभव नहीं करते, वे नरक हैं। नरान् कायन्ति आह्वयन्तीति नरकाः। (उशाटी प १८२)
जो पापी नरों को बुलाते हैं, वे नरक हैं । ६२६. णह (नख) न क्षीयंति नखाः।
(उचू पृ २०८) जो पूरे क्षीण नहीं होते, वे नख हैं। ६३०. णह (नभस्) न भाति न दीप्यते इति नभः।
(भटी पृ १४३१) __ जो दीप्त/रूपायित नहीं होता, वह नभ है । १. 'नरक' के अन्य निरुक्तनृणाति शिक्षयति पापिनः नरकः । नरान् कृन्तीति कृणोति वेति वा ।
(अचि पृ ३०५) जहां पापी प्राणियों को शिक्षा दी जाती है, वह नरक है। जहां मनुष्यों को काटा जाता है, वह नरक है। २. नरान्-उपलक्षणत्वात् तिरश्चोऽपि प्रभूतपापकारिणः कायन्तीव
आह्वयन्तीवेति नरकाः । (नक १ टी पृ ३६) ३. 'नख' के अन्य निरुक्त
न खं छिद्रमत्र नखम् । (वा पृ ३६३४) जिसमें ख/छिद्र नहीं होता, वह नख है। न खन्यते नखः। जिसे कुरेदा नहीं जाता, वह नख है । नखति गच्छतीति वा नखः । (अचि पृ १२०)
जो बढ़ता है, वह नख है । ४. 'नभ' के अन्य निरुक्तनाते मेधैः नभः । (वा पृ ३६६५) जो मेघों से घिर जाता है, वह नभ है । (नह -बन्धने) नभ्यतीति नभः । (अचि पृ ३७) जो शब्द करता है, वह नभ आकाश है । (नभ्-शब्दे)
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