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निरुक्त कोश
१४१ ७३२. ताय (तात) तायते-सन्तानं करोति पालयति च सर्वापद्भ्य इति तातः ।'
(उशाटी प ३६८) जो सन्तान को पैदा करता है और उसका पालन करता है, वह तात/पिता है। ७३३. तायि (तायिन्) तायोऽस्यास्तीति तायी।
(दटी प २६२) जो सुदृष्ट मार्ग की देशना के द्वारा शिष्यों का संरक्षण करता है, वह तायी है। ७३४. तायि (त्रायिन्) त्राएति संसारसागरे पडमाणे जीवे तम्हा तायी ।
(दअचू पृ २३३) जो संसार-सागर में गिरते हुए जीवों को त्राण देता है, वह त्रायी/रक्षक है। अन्नाणं अप्पं च तारयतीति तायी। (दजिचू प २११)
जो स्व और पर को त्राण देता है, वह त्रायी है। ७३५. तालउट (तालपुट)
तालपुडसमयेण मारयतीति तालउडं । (दअचू पृ १६६) जेणंतरेण ताला संपुडिज्जति तेणंतरेण मारयतीति तालपुडं ।
. (दजिचू पृ २६२) जो विष ताल/हथेली संपुटित हो उतने समय में मार डालता है, वह तालपुट कहलाता है । १. (क) ताङ्--सन्तान पालनयोः । (ख) 'तात' का अन्य निरुक्ततनोति सन्तति तातः। (अचि पृ १२६)
___ जो सन्तति का विस्तार करता है, वह तात/पिता है । २. तायः सुदृष्टमार्गोक्तिः, सुपरिज्ञातदेशनया विनेयपालयितेत्यर्थः ।
- (दटी प १६२)
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