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निरुक्त कोश
१२१ ६२४. णग (नग) न गच्छतीति नगः।
(उचू पृ २१४) जो गति नहीं करता, वह नग/पर्वत है। ६२५. णगर (नगर)
ण एत्थ करो विज्जतीति नगरं ।' (आचू पृ २८१)
___ जहां किसी प्रकार का कर नहीं लगता, वह नगर है। ६२६. णय (नय)
नयंति गमयंति प्राप्नुवंति वस्तु ये ते नयाः। (उचू पृ २३४)
जो वस्तु का बोध कराते हैं, वे नय हैं। ६२७. गर (नर) नृत्यत इति नरः।
(उचू पृ २१६) जो शक्ति का आयतन है, वह नर है। नृणन्ति–निश्चिन्वंति वस्तुतत्त्वमिति नराः ।
(नक १ टी पृ ३९) जो यथार्थ का निर्णय करते हैं, वे नर हैं। नृणन्ति-विवेकमासाद्य नयधर्मपरा भवंतीति नराः।
___ (नक ४ टी पृ १२८) जो नीतिमान् हैं, वे नर हैं।
जो आकाश में गमन करता है, वह नक्षत्र है। जिसकी प्रभा कभी आवृत नहीं होती, वह नक्षत्र है। (क्षद्-संवरणे) १. 'नगर' का अन्य निरुक्त
नगा इव प्रासादा सन्त्यत्र नगरम् । (आप्टे पृ ८७३) जहां नग/पर्वत जितने ऊंचे भवन होते हैं, वह नगर है। २. क. नर (Ved. nara cp nrtu) to be strong. (पा पृ ३४७)
ख. 'नर' का अन्य निरुक्तनरति नेतीति नरो। (विटी १/७), जो ले जाता है, वह नर है।
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