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६६७. दिरिसण ( निदर्शन )
अहिकं दरिसणं निदरिसणं । निच्छियं दरिसिति अणेण अत्था तेण निदरिसणं ।
६६८. णिदा (दे )
जिससे अर्थ का निश्चित दर्शन / प्रकटीकरण होता है, वह निदर्शन / उदाहरण है .
वेदना है | ६६. णिदाह ( निदाघ ) अदाहो निदाहो ।
नितरां निश्चितं वा सम्यक् दीयते चित्तमस्यामिति निदा ।
अधिक दाह निदाघ / गर्मी है |
६७०. णिद्दा ( निद्रा)
(प्रज्ञाटी प ५५७ ) जिसमें चित्त निश्चित रूप से निविष्ट होता है, वह णिदा /
निद्रा है ।
६७१. सिवत्ति ( निर्देशवर्तिन् )
निरुक्त कोश
नियतं द्राति- कुत्सितत्वम विस्पष्टत्वं गच्छति चैतन्यमनयेति निद्रा ( स्थाटी प ४२८ )
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( अचू पृ २० )
६७२. द्धिम्म ( निर्धर्मन् ) णिग्गतधम्मा गिद्धम्मा ।
. ( दजिचू पृ ४० )
जिससे चेतना निश्चित रूप से सुषुप्ति को प्राप्त होती है, वह
जो धर्म से रहित हैं, वे निर्धर्म हैं ।
१. द्वा- कुत्सायां गतौ ।
निद्देसो आणा तम्मि वति निद्देसवत्तिणो । ( दअचू पृ २१८) जो निर्देश / आज्ञा में वर्तन करता है, वह निर्देशवर्ती / आज्ञानुवर्ती है ।
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( बृभा १९४ )
( निचू १ पृ १२२)
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