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निरुक्त कोश
६११. ठवणा (स्थापना)
उडुबद्धात अण्णा मेरा ठविज्जतीति ठवणा
ऋतुबद्ध काल
स्थापना / पर्युषणा है |
६१२. ठवणा (स्थापना) स्थाप्यत इति स्थापना |
६१३. ठाण (स्थान)
स्थापित करना स्थापना है ।
तिट्ठति तहिं तेण ठाणं ।
६१४. ठाण (स्थान)
जहां ठहरा जाता है, वह स्थान है ।
६१५. ठाण (स्थान)
के अतिरिक्त मर्यादा
तिष्ठति स्वाध्यायव्यापृता अस्मिन्निति स्थानम् ।
भूमि है । ६१६. ठाणाइय (स्थानातिग )
ठाणे णं जीवा ठाविज्जंति, अजीवा।
( नं ८३)
ठाविज्जंति त्ति स्वरूपतः स्थाप्यंते, प्रज्ञाप्यते ।
(नंच पृ ६४ ) जिसमें जीव - अजीव आदि स्थापित / प्ररूपित हैं, वह स्थानांग ( सूत्र ) है ।
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६१७. ठिइ (स्थिति)
स्थीयतेऽनयेति स्थितिः ।
(दश्रुचू प ५२ ) स्थापित करना
(व्यभा ३ टीप ५४)
स्वाध्यायी साधक जहां स्थित होते हैं, वह स्थान / स्वाध्याय
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स्थानं - कायोत्सर्ग स्तमतिगच्छति - करोतीति स्थानातिगः ।
( औटी पृ ७५
( स्थाटी प २ )
जो स्थान / कायोत्सर्ग करता है, वह स्थानातिग है ।
( आचू पृ ४४ )
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जिसके द्वारा ठहरा जाता है, वह स्थिति है ।
(प्राक १ टी पृ ४ )
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