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निरुक्त कोश ६००. जोइ (ज्योतिस्) ज्योतयतीति ज्योतिः।
(सूचू १ पृ २११) जो प्रकाशित करती है, वह ज्योति है। ६०१. जोइ (ज्योतिस्) द्योतयन्ति-प्रकाशयन्ति जगदिति ज्योतींषि । (प्रसाटी प ३३३)
जो जगत् को ज्योतित/प्रकाशित करते हैं, वे ज्योति/ विमान हैं। ६०२. जोइ (द्योति) धु तते द्योतिः।
(उचू पृ २१०) जो द्योतित/प्रकाशित होती है, वह द्योति/अग्नि है । ६०३. जोइसिअ (ज्योतिष्क) जोतकरा ज्योतिष्का।
(सूचू २ पृ ३६७) जो उद्योत करते हैं, वे ज्योतिष्क देव हैं। ६०४. जोग (योग) जं जीवे जुजयती पेरयति वा ततो जोगा। (जीतभा ७३२)
जो जीव द्वारा प्रयुक्त हैं, वे योग/प्रवृत्तियां हैं।
जो जीव को प्रेरित करते हैं, वे योग हैं । युज्यत इति योगः।
__ (आवचू १ पृ. ६०६) जो जोड़ता है, वह योग है। ६०५. जोगव (योगवत्) योगो नाम संयम एव, योगो यस्यास्तीति स भवति योगवान् ।
(सूचू १ पृ ५४) जो योग/संयम-संपन्न है, वह योगवान् है। योगः-समाधिः सोऽस्यास्तीति योगवान् । (उशाटी १ ३४३)
___ जो योग/समाधि-संपन्न है, वह योगवान् है। १. युज्यते-धावनवल्गनादिक्रियासु व्यापार्यत इति योगः।
(नक १ टी पृ ११३)
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