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निरुक्त कोश
१०५ ५३६. चरणकरणपारविअ (चरणकरणपारविद्)
चरंति तदिति चरणं व्रताभ्युपगम, कुर्वन्ति तदिति करणं पडिलेहणादि पारमन्तगमन मित्येकोऽर्थः, चरणकरणपारं विदंतीति चरणकरणपारविदु ।
(सूचू २ पृ ३३५) व्रतों को स्वीकार करना 'चरण' है, प्रतिलेखन आदि दैनिक क्रियाएं करना 'करण' है। जो इन दोनों के पार/अंतिम बिन्दु को
जान लेते हैं, स्पर्श कर लेते हैं, वे चरणकरणपारविद् हैं। ५४०. चरित्त (चरित्र) चर्यते-आसेव्यते यत् तेन वा चर्यते—गम्यते मोक्ष इति चरित्रम् ।
(स्थाटी प ४६) जिसका चरण आसेवन किया जाता है, वह चरित्र है।
जिससे मोक्ष प्राप्त किया जाता है, वह चरित्र है। चरन्ति-गच्छन्त्यनिन्दितमनेनेति चरित्रम् । (आवमटी प ११७)
जिसके द्वारा चरण अनिंद्य-आचरण किया जाता है, वह
चरित्र है। ५४१. चरिया (चर्या) चरणं चर्यते वा चर्या ।
(आटी प २०१) जिसका आचरण किया जाता है, वह चर्या है। ५४२. चल (चल) चलति चालयति वा चलो।
(आचू पृ २४१) जो विचलित होता है, वह चल है।
जो विचलित करता है, वह चल है । ५४३. चाउरंत (चातुरन्त) चत्वारः चतुर्गतिलक्षणा अन्ताः अवयवाः यस्मिस्तच्चातुरन्तम् ।
(उशाटी प ५८५) जिसके चार गतिरूप अन्त/अवयव हैं, वह चातुरंत/संसार
है।
१. चरन्ति तस्मि, सोलेसु परिपूरकारिताय पवत्तन्ती ति चारित्तं ।
(वि १/२५)
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