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निरुक्त कोश ५३२. चउत्थ (चतुर्थ) चत्वारि भक्तानि यत्र त्यज्यन्ते तच्चतुर्थ (भक्तम्) ।
(ज्ञाटी प ७६) जिसमें चार समय का आहार छोड़ा जाता है, वह चतुर्थ
भक्त/उपवास है। ५३३. चंडाल (चण्डाल)
चंडेन अलं यस्य भवति चंडालः ।
__ जो चंड/क्रोध से परिपूर्ण है, वह चण्डाल/क्रोधी है । चंडेन वा आगलितः चंडालः ।
(उचू प २९) जो चंड/क्रोध से उद्विग्न है, वह चण्डाल/क्रोधी है । ५३४. चक्कवट्टि (चक्रवतिन्) चक्रेण वर्तयति पालयतीति चक्रवर्ती ।' (अनुद्वामटी प १५८)
जो चक्र के द्वारा राज्य का संचालन करता है, प्रजा का पालन करता है, वह चक्रवर्ती है। ५३५. चक्किय (चाक्रिक)
चक्र प्रहरणमेषामिति चाक्रिकाः।
चक्र जिनका शस्त्र है, वे चाक्रिक योद्धा हैं । १. चण्डमुग्रं कर्म अलति पर्याप्नोति चण्डालः। (अचि पृ १६८) २. 'चक्रवर्ती' के अन्य निरुक्त
नृपाणां चक्रे समूहे वर्तते स्वाम्यनेनेति चक्रवर्ती । जो राजाओं के चक्र समूह में स्वामी होता है, वह चक्रवर्ती है । चक्रं राष्ट्र वर्तयतीति वा । (अचि पृ १५४) जो राष्ट्र का पालन करता है, वह चक्रवर्ती है । चक्रे भूमण्डले वर्तित, चक्रं सैन्यचक्रं वा सर्वभूमौ वर्तयित शीलमस्य चक्रवर्ती । (वा पृ २८३६) जो (छह खण्ड) पृथ्वी पर शासन करता है, वह चक्रवर्ती है। जिसकी सेना सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैल जाती है, वह चक्रवर्ती है।
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