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निरुक्त कोश
५२६. घसी (दे)
गसति सुहुमसरीरजीवविसेसा इति घसी। (दअचू पृ १५६)
जहां सूक्ष्म जीव ग्रसित/एकत्रित रहते हैं, वह घसी/पोली
भूमि है। ५२७. घाइ (घाति) स्वावार्य गुणं ध्नन्ति इत्येवंशीलाः घातिन्यः ।
(नक ५ टी पृ २) जो आत्मगुणों का घात करते हैं, वे घाति (कर्म) हैं । ५२८. घास (ग्रास) ग्रस्यत' इति ग्रासः।
(उचू पृ७५) जिसको चबाया जाता है, वह ग्रास/भोजन है.। ५२६. घासेसणा (ग्रासैषणा) घासं एसंतीति घासेसणा।
(आचू पृ ३२३) जिसमें ग्रास/भक्षण-क्रिया का विवेक किया जाता है, वह
ग्रासैषणा है। ५३०. घोर (घोर) घूर्णत' इति घोरः।
(उचू पृ ११६) जो प्रकंपित करता है, वह घोर भयावह है ।
जो घूर क्रूर है, वह घोर/निर्दय है । ५३१. घोरमुहुत्त (घोरमुहूर्त) घूर्णत इति घोरः।
(उचू पृ ११६) जो घोर/गतिशील है, वह मुहूर्त काल है। १. प्रस-अदने। २. Ghorah horrible (Nepali-ghurnu) (ए पृ ३६२) ३. घर---हिंसायाम् । घुर-भीमार्थशब्दयोः । हन्—हिंसागत्योः । ४. घूर्णत्-भ्रमणे ।
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