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इज्यन्ते पूज्यन्ते इति यक्षाः ।
जिनकी पूजा की जाती है, वे यक्ष हैं ।
५७४. जग (जग)
५७५. जग ( जगत् ) जायत इति जगत् । '
जगति विद्यन्ते ये, जायन्त इति वा जगाः । जो जगत् में विद्यमान हैं, वे जग / जन्तु हैं । जो उत्पन्न होते हैं, वे जग / जंतु हैं ।
जो उत्पन्न होता है, वह जगत् है ।
५७६. जगसव्वसि (जगसर्वदर्शिन् )
जगे सव्वं पस्सतीति जगसव्वदंसी ।
५७७० जडा (जटा )
जायत इति जडा ।
५७८. जण (जन )
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निरुक्त कोश
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( उशाटी प १८७ )
जो जगत् में सब कुछ देखता है, वह जगसर्वदर्शी है ।
१. ' जगत्' का अन्य निरुक्त
गच्छतीत्येवंशीलं जगत् । (अचि पृ ३०६ ) जो निरंतर गतिशील है, वह जगत् है ।
( सू १ पृ २०३ )
(उच्च् पृ १३८) जो तपस्वी के या तपस्या में उत्पन्न होती है, वह जटा है ।
( सूचू १ पृ १४६ )
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( सूच १ पृ ६८ )
जति जाइस्संति य जाणंति वा कम्माणि जणा । ( आचू पृ २३२) जो कर्म - संस्कारों को उत्पन्न करते हैं, करेंगे, वे जन हैं । जो कर्म - संस्कारों को जानते हैं, वे जन हैं ।
२. (क) जायते तपसि जटा । (अचि पृ १८१ )
(ख) 'जटा' का अन्य निरुक्त
जटति परस्परं संलग्ना भवतीति जटा । ( शब्द २ पृ ५०३ ) परस्पर उलझे हुए केशों की संहति को जटा कहते हैं । ( जट् - संहतौ )
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