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निरुक्त कोश
३४५. उसह (वृषभ) . वृषेन भातीति वा वृषभः ।
(जंटी प १३५) जो वृष/धर्म से सुशोभित होता है, वह वृषभ/ऋषभ है। ३४६. उस्सग्ग (उत्सर्ग) उज्जयसग्गुस्सग्गो।
(वृभा ३१६) उद्यतः सर्गः-विहार उत्सर्गः ।
(बृटी पृ ६७) जो सामान्य विहार आचार है, वह उत्सर्ग है । ३४७. उस्सन्न (अवसन्न)
सामाचार्यासेवने अवसीदति स्मेत्यवसन्नः। (व्यभा ३ टी प १०७)
जो सामाचारी के पालन में खिन्न होता है, वह अवसन्न
३४८. उस्सप्पिणी (उत्सप्पिणी)
उत्सर्पति–वर्द्धतेऽरकापेक्षया उत्सर्पयति वा भावानायुष्कादीन वर्द्धयतीति उत्सप्पिणी।
(स्थाटी प २५) जिसमें आयुष्य आदि का उत्सर्पण/वर्धन होता है, वह
उत्सर्पिणी (कालचक्र) है। ३४६. उस्सुअ (उत्सूत्र) । ऊवं सूत्रादुत्सूत्रं ।
(आवचू २ पृ ६६) जो सूत्र/आगम से ऊर्ध्व/परे है, वह उत्सूत्र है। ३५०. उस्सेइम (उत्स्वेदिम)
उत-ऊद्वं निर्गच्छता वाष्पेण यः स्वेदः स उत्स्वेदः, उत्स्वेदेन निर्वृत्तमुत्स्वेदिमम् ।
(बृटी पृ २७०) जो ऊपर उठते हुए स्वेद/वाष्प से निष्पन्न होता है, वह
उत्स्वेदिम है। ३५१. ऊसासग (उच्छ्वासक)
उच्छ्वसितोति उच्छ्वासकः। (आवहाटी १ पृ २२३)
जो उच्छ्वास लेता है, वह उच्छ्वासक है ।
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