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३०. करुण ( करुण )
कुत्सितं रौत्यनेनेति करुणः ।'
जो कुत्सित / दयनीय शब्द करता है, वह करुण है ।
३६१. कलत्त ( कलत्र )
धनं कलं यस्मात् सर्वं अत्ते गृह्णाति तस्मात् कलत्तं ।
३६२. कलह ( कलह )
( अनुद्वामटी प १२४ )
( तिचू २२५८ )
जिससे कल / धन आदि सब कुछ ग्रहण कर लिया जाता है, वह कलत्र / पत्नी है ।
निरुक्त कोश
कलाभ्यो हीयते येन स कलहः
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( उचू पृ १७१ ) जिससे कलाएं / शक्तियां क्षीण होती हैं, वह कलह है ।
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१. 'करुणा' के निरुक्त
परदुक्खे सति साधुनं हृदयकम्पनं करोतीति करुणा ।
दूसरों के दुःख को देखकर हृदय में जो प्रकम्पन पैदा होता है, वह करुणा है ।
किणाति वा पदुक्ख हिंसति विनासेतीति करुणा । ( वि ६ / ६६ ) - जो दूसरों के दुःख का विनाश करती है, वह करुणा है । २. 'कलत्र' के अन्य निरुक्त
कडति - माद्यति कड, लश्वे कलत्रम् । (अचि पृ ११७ )
जो गृहस्वामिनी होने के कारण गर्व करती है, वह कलत्र है । कलं त्रायते इति कलत्रम् | ( वा पृ १७७९ )
ata / धन / परिवार को त्राण देती है, वह कलत्र है । ३. 'कलह' के अन्य निरुक्त
कल्यते क्षिप्यतेऽत्र कलहः ।
जो मैत्री का विनाश करता है, वह कलह है । कलं हीनबलं हन्तीति वा ( कलहः ) ।
जो असमर्थ को हानि पहुंचाता है, वह कलह है । कलां जहातीति वा ( कलहः ) ( अचि पृ १७७ )
कला / विवेक का विनाश करता है, वह कलह है । कलं कामं हन्तीति कलहः । ( आप्टे पृ ५४५ )
जो कल / मधुरता को समाप्त करता है, वह कलह है ।
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