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निरुक्त कोश ३९६. कस (कश) कशतीति कशः ।
(उचू पृ ३०) जो गति प्रदान करता है, वह कशा/चाबुक है।
जो दण्डित करता है, वह कशा/चाबुक है । ३६७. कसाय (कषाय) कसंतीति कसाया।
(आचू पृ २८६) जो (कर्म-पुद्गलों को) आकृष्ट करते हैं, वे कषाय हैं ।
जो (आत्मा को) रञ्जित करते हैं, वे कषाय हैं । या अप्रशस्ता गतिः तां नयंतीति तेन कषायाः।'
जो अप्रशस्त गति की ओर ले जाते हैं, वे कषाय हैं। शुद्धमात्मानं कलुषीकरोतीति कषायाः। (आवचू १ पृ ५१७)
जो शुद्ध आत्मस्वरूप को कलुषित/मलिन करते हैं, वे कषाय हैं। कष्यन्ते-हिंस्यन्ते प्राणिनो यत्रासौ कषः-संसारस्तमेति प्राप्नोति प्राणी यैस्ते कषायाः।
(प्रसाटी प १३६) जहां प्राणी विनष्ट होते हैं, वह कष/संसार है । जिनके कारण प्राणी कष/संसार में जन्म-मरण करते हैं, वे कषाय हैं । ३९८. कहा (कथा) कथ्यत इति कथा।
(सूचू १ पृ १८८) जो कही जाती है, वह कथा है । १. 'कशा' का अन्य निरुक्तकशा प्रकाशयति भयमश्वाय । कृष्यतेर्वाणूभावात् । (नि ६/१९)
जो भय का प्रकाशन करती है, वह कशा/चाबुक है । जो लघु होने के कारण खींची जाती है, वह कशा/चाबुक है।
(कश्-गति-शातनयोः) २. कषाय-रागे, कषायितः- रञ्जितः। (वा पृ १८३६) ३. कष्-गतौ । ४. कष् - हिंसायाम् ।
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