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निरुक्त कोश धर्मगणं धारयतीति गणधरः।
(दटी प १०) __ जो धर्मगण को धारण करता है, वह गणधर है। ४८६. गणहारि (गणधारिन्) गणं-साध्वादिसमुदायलक्षणं धारयितुं शीलमस्येति गणधारी।
(आवहाटी १ पृ १६०) जो गण/साधुसमुदाय को धारण करता है, वह गणधारी है । गुणसमुदयं वा धारयितुं शीलमस्येति गणधारी। (बृटी पृ ३७७)
जो गुणसमूह को धारण करता है, वह गणधारी है। ४६०. गणिम (गणिम) जण्णं गणिज्जइ (गणिमं)।
(अनुद्वा ३८२) गण्यते--सङ्ख्यायते वस्त्वनेनेति गणिमम् ।
जिसके द्वारा वस्तु की गणना की जाती है, वह गणिम है। गण्यते-सङ्ख्यायते यत्तद्गणिमम् । (अनुद्वामटी प १४२)
जिसकी गणना की जाती है, वह गणिम है। ४६१. गमक (गमक) गम्यते अनेनार्थ इति गमकः ।'
(सूचू १ पृ १२) जिसके द्वारा अर्थ को जाना जाता है, वह गमक/विकल्प
४६२. गमिय (गमिक) गमबहुलत्तणतो गमियं ।
(नंचू पृ ५६) जिसमें गमों/विकल्पों की बहुलता है, वह गमिक श्रुत है । १. गम्यते वस्तुस्वरूपमेभिरिति गमा-वस्तुपरिच्छेदप्रकाराः।
(उशाटी प ३४२) २. आदि-मज्झ-वसाणे वा किंचिविसेसजुत्तं सुत्तं दुगादिसतग्गसो तमेव पढिज्जति तं गमियं भण्णति ।
(नंचू पृ ५६)
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