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निरुक्त कोश
४३९. कूइय ( कूजित )
कुत्सितं रसितं कूजितं ।
४४०. कूडगाह ( कूटग्राह )
जो अव्यक्त ध्वनि की जाती है, वह कूजित है ।
कूटेन जीवान् गृह्णातीति कूटग्राहः ।
ग्राह है ।
४४१ . कूर ( क्रूर )
( विपाटी प४८ )
कूटयन्त्र से जो मृग आदि जीवों को फंसाता है, वह कूट
कृन्तन्तीति क्रूराः ।
४४२. केय (केय)
जो काटता है / नष्ट करता है, वह क्रूर है ।
४४३. केस (केश )
कित्यते - उष्यते अस्मिन्निति घञि केतः । जिसमें प्राणी वास करते हैं, वह केत / गृह है ।
क्लेशयन्ति वा कामिनः क्लेशाः ( केशाः ) ' जो कामी पुरुषों को कष्ट पहुंचाते हैं,
वे
४४४. कोकंतिय (दे० )
( आवचू २ पृ ७३ )
४४५. कोडि (कोटि)
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१. 'केश' का अन्य निरुक्त
( उचू पृ १३५ )
की कंतियन्ति - रात्रौ को को इत्येवं रारटीति । ( आटी प ३३७ )
जो रात्रि के समय 'को को' इस प्रकार बोलती है, वह कोकंति / लोमड़ी है ।
( प्रसाटी प ४६ )
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( (उच् पृ ११ )
क्लेश / केश हैं ।
कोडिज्जते जम्हा बहवे दोसा उ सहियए गच्छं । कोडि त्ति... | ( जीतभा १२८७ )
के शेरत इति केशाः । (अचि पृ १२८ ) Aata / मस्तक पर होते हैं, वे केश / बाल हैं ।
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