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निरक्त कोश
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४७३. गअ (गज) गच्छतीति गजः ।
(सूचू २ पृ ३५४) जो गमन करता है, वह गज/हाथी है । गजति गर्जते वा गजः।
(सूचू २ पृ ४४४) जो गर्जना करता है, वह गज है। ४७४. गइ (गति) गम्यते-प्राप्यते स्वकर्म रज्जुसमाकृष्टैर्जन्तुभिरिति गतिः ।
__ (प्रसाटी प २६१) अपने कर्मों के द्वारा आकृष्ट हो प्राणी जिसे पाते हैं, वह गति है। ४७५. गंगा (गङ्गा) गाढगतो गच्छति वा गंगा ।
(सूचू १ पृ १४८) जो सघन रूप से निरन्तर प्रवाहित है, वह गंगा है। गां गच्छतीति गंगा।
(उचू पृ २१४) जो स्वर्ग से गो/पृथ्वी की ओर लाई गई है, वह गंगा है।
जो गा/स्तुति/शोभा को प्राप्त होती है, वह गंगा है। ४७६. गंठिभेयग (ग्रन्थिभेदक)
ग्रन्थि – कार्षापणादिपुट्टलिकां भिन्दन्ति-आच्छिन्दन्तीति प्रन्थिभेदकाः।
(औटी ४) जो ग्रंथि रुपयों की नौली का बलात् भेदन/हरण कर लेते हैं, वे ग्रंथिभेदक/चोर-विशेष हैं। १. 'गज' का अन्य निरुक्त-- गर्जतिः माद्यति गजः। (अचि पृ २७३)
जो मदोन्मत्त होता है, वह गज है। २. 'गंगा' के अन्य निरुक्तगच्छति समुद्रं गङ्गा । गामगं वा गच्छतो ति गङ्गा । (अचि पृ २४०) - जो समुद्र की ओर गमन करती है, वह गंगा है। जो स्वर्गीय सुखों को प्राप्त करती है, वह गंगा है।
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