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निरुक्त कोश
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४३६. कुसल (कुशल) कुसे' लुणातीति कुसलो।'
(आचू पृ ७४) जो कुश कर्म को काटता है, वह कुशल है । कुच्छिते सलतीति कुशलं ।
(आचू पृ २१५) कुच्छियाओ कारणाओ सलइत्ति कुसलो।' (दजिचू पृ ३२४)
जो कु/पाप से दूर हटता है, वह कुशल है । ४३७. कुसील (कुशील)
कुच्छितं सीलं तमिति कुशीला। (आचू पृ २१०)
जिसका शील कुत्सित है, वह कुशील है। ४३८. कुह (कुह)
कुत्ति भूमी तोए धारिज्जंतीति कुहा। (दअचू पृ ७)
जो कु/भूमि द्वारा धारण किए जाते हैं, वे कुह/वृक्ष हैं । १. (क) को शेते कुशः। (अचि पृ २६७)
जो कु/पृथ्वी पर उत्पन्न होता है, वह कुश/तृण है । (ख) दव्वकुसा दब्भा, भावकुसा अट्टप्पगारं कम्मं ते भावकुसे लूनंतीति
कुसला। (उचू पृ २११) २. 'कुशल' के अन्य निरुक्तकुशं लातीति कुशलः। जो कुश/दर्भ को ग्रहण करता है, वह कुशल कुशग्राहक है । (लांक-आदाने ।) कुश्यति-पुण्यात्मना सम्बध्यते कुशलम् । (अचि पृ १६) जो पवित्र आत्मा से संबद्ध होता है, वह कुशल है। . कौ-पृथिव्यां शलति श्लाघां प्राप्नोतीति कुशलः । (शब्द २ पृ. १६०)
जो कु/पृथ्वी पर श्लाघा प्राप्त करता है, वह कुशल है। ३. कुं-पापं तस्मात् शलति गच्छति पृथक्त्वं प्राप्नोतीति कुशलम् ।
(शब्द २ पृ १६०) (शल-गतो, श्लाघे, चलने)।
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