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निरुक्त कोश
४०५. कारग (कारक) क्रियां करोतीति कारकः।
(नंचू पृ८) जो क्रिया करता है, वह कारक है। कारयतिति कारकः।
(प्रसाटी प २८३) जो कराता है, वह कारक है । ४०६. काल (काल) कलनं-समस्तवस्तुस्तोमस्य संख्यानमिति कालः।'
(प्रसाटी प २८९) जिससे समस्त पदार्थों का कलन/ज्ञान होता है, वह काल है । कलयन्ति-परिच्छिन्दन्ति वस्तु तस्मिन् सतीति कालः।
' (विभामहेटी १ पृ ७१५) जिसके होने पर वस्तु के परिच्छेद/पृथक् अस्तित्व का बोध होता है, वह काल है। कलयन्ति-समयोऽस्यानेन रूपेणोत्पन्नस्यावलिकामुहूर्तादि वा ।
जिससे समय, आवलिका, मुहूर्त आदि की कलना/गणना होती
है, वह काल है। ४०७. कालकंखि (कालकांक्षिन्) कालं काङ्क्षतीति कालकंखी । (सूचू १ पृ २०४)
जो काल मरण की कांक्षा करता है, वह कालकांक्षी है। ४०८. कालिय (कालिक) काले-प्रथमचरमपौरुषीद्वये पाठ्यत इति कालिकं ।
(आवहाटी १ पृ १९०) जो प्रथम और चतुर्थ पौरुषी में पढ़ा जाता है, वह कालिक (श्रुत) है। १. 'काल' का अन्य निरुक्त :कालयति -क्षिपति सर्वभावान् कालः। (अचि पृ २६) कलनात् सर्वभूतानां स कालः परिकीर्तितः। (वा पृ १७७६)
जो सबको अपना ग्रास बनाता है, वह काल/समय है।
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