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निरक्त कोश ३६६. काकपेज्ज (काकपेय)
तडत्थितेहिं काकेहि पिज्जंति काकपेज्जा। (अचू पृ १७४)
जल से परिपूर्ण वैसा तालाब या नदी जिसके तट पर बैठकर कौए पानी पी लेते हैं, वह काकपेया-नदी या तालाब होता
४००. काम (काम) कामयन्त इति कामाः।
(सूटी २ प १७) जिनकी कामना की जाती है, वे काम/इन्द्रियविषय हैं । ४०१. कामकामि (कामकामिन्) कामे कामयति कामकामी।
(आचू पृ८३) जो काम इन्द्रिय विषयों की कामना करता है, वह कामकामी है। ४०२. काय (काय) चीयत इति कायः ।
(भटी प १८१) जो उपचित होता है, वह काय शरीर है । ४०३. कायतिज्ज (कायतार्य)
कारण तरिज्जंतित्ति कायतिज्जाओ। (दजिचू पृ २५८)
__ जो शरीर के द्वारा तरने योग्य हैं, वे कायतार्य (नदी,
तालाब) हैं। ४०४. कायोवग (कायोपग) कायान् कायेषु वोपगच्छन्तीति कायोपगाः। (सूटी २ प १४२)
जो काया/शरीर का अनुसरण करते हैं, वे कायोपग हैं । ....
जो काया/शरीर में ही अनुरक्त रहते हैं, वे कायोपग हैं । १. कुच्छितानं सासवधम्मानं आयो ति कायो । (वि. १५/१)
जो झरने वाले कुत्सित पदार्थों का उत्पत्ति-स्थल है, वह काय है।
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