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________________ ૭૪ ३०. करुण ( करुण ) कुत्सितं रौत्यनेनेति करुणः ।' जो कुत्सित / दयनीय शब्द करता है, वह करुण है । ३६१. कलत्त ( कलत्र ) धनं कलं यस्मात् सर्वं अत्ते गृह्णाति तस्मात् कलत्तं । ३६२. कलह ( कलह ) ( अनुद्वामटी प १२४ ) ( तिचू २२५८ ) जिससे कल / धन आदि सब कुछ ग्रहण कर लिया जाता है, वह कलत्र / पत्नी है । निरुक्त कोश कलाभ्यो हीयते येन स कलहः '' ( उचू पृ १७१ ) जिससे कलाएं / शक्तियां क्षीण होती हैं, वह कलह है । Jain Education International १. 'करुणा' के निरुक्त परदुक्खे सति साधुनं हृदयकम्पनं करोतीति करुणा । दूसरों के दुःख को देखकर हृदय में जो प्रकम्पन पैदा होता है, वह करुणा है । किणाति वा पदुक्ख हिंसति विनासेतीति करुणा । ( वि ६ / ६६ ) - जो दूसरों के दुःख का विनाश करती है, वह करुणा है । २. 'कलत्र' के अन्य निरुक्त कडति - माद्यति कड, लश्वे कलत्रम् । (अचि पृ ११७ ) जो गृहस्वामिनी होने के कारण गर्व करती है, वह कलत्र है । कलं त्रायते इति कलत्रम् | ( वा पृ १७७९ ) ata / धन / परिवार को त्राण देती है, वह कलत्र है । ३. 'कलह' के अन्य निरुक्त कल्यते क्षिप्यतेऽत्र कलहः । जो मैत्री का विनाश करता है, वह कलह है । कलं हीनबलं हन्तीति वा ( कलहः ) । जो असमर्थ को हानि पहुंचाता है, वह कलह है । कलां जहातीति वा ( कलहः ) ( अचि पृ १७७ ) कला / विवेक का विनाश करता है, वह कलह है । कलं कामं हन्तीति कलहः । ( आप्टे पृ ५४५ ) जो कल / मधुरता को समाप्त करता है, वह कलह है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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