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३५७. एलय (एडक)
( उचू पृ १५८ )
एति एत्याकारितो एत्येलकः । एति - एति / आओ-आओ इस प्रकार पुकारने पर जो आता है, se / मेष है।
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३५८. एवंभूय ( एवम्भूत)
एवं - यथा व्युत्पादितस्तं प्रकारं भूतः - प्राप्तः एवम्भूतः ।
३५६. एसणा ( एषणा )
जो शब्द की व्युत्पत्ति के अनुसार प्राप्त होता है, वह एवंभूत (नय ) है |
एषति एभिरित्येषणा ।
३६०. एसणिय ( एषणीय)
जिससे अन्वेषणा की जाती है, वह एषणा है ।
३६१. एसिय (एषिक )
निरुक्त कोश
एष्यते - गवेष्यते उद्गमादिदोषविकलतया साधुभिर्यत्तदेषणीयम् । ( स्थाटी प १०३ )
साधु जिसकी उद्गम आदि दोषों से रहित एषणा करते हैं, वह एषणीय / कल्पनीय है ।
३६२. ओमचरय (अवमचरक )
( प्रसाटी प २४६ )
एवन्तीति एषिका ।
( सू चू १ पृ १७५ ) जो शिकार के लिए / मांस प्राप्त करने के लिए प्राणियों की खोज करते हैं, वे एषिक हैं ।
१. 'एडक' का अन्य निरुक्त
( उचू पृ १७४ )
इज्यते देवता अनेन एडक: । (अचि पृ २८५ )
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अवमौदर्यां चरति --- आसेवते अवमचरकः । ( उशाटी प ६०६ ) जो अवम / कम खाता है, वह अवमचरक / अल्पभोजी है ।
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जिसकी बलि से देवता प्रसन्न होते हैं, वह एडक / मेष है ।
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