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निरक्त कोश
जो मोक्ष के निकट पहुंचाता है, वह उपधान/तपोविशेष है। उपधीयते-उपष्टभ्यते श्रुतमनेनेति उपधानम् ।'
(स्थाटी प १७४) जिससे श्रुत/ज्ञान अवस्थित होता है, वह उपधान (तप)
उपदधाति—पुष्टि नयत्यनेनेत्युपधानम्। (व्यभा १ टी प २५)
जो ज्ञान को पुष्ट करता है, वह उपधान (तप) है। ३४१. उवहाण (उपधान) उप-सामीप्येन धीयते-व्यवस्थाप्यत इत्युपधानम् ।
(आटी प २६६) जो पास में रखा जाता है, वह उपधान/तकिया है । ३४२. उवहि (उपधि) उपदधाति तीर्थ उपधिः।
(उचू पृ २०४) जो तीर्थ/परंपरा को चलाती है, वह उपधि/साधन है । उपधीयते-संगृह्यत इत्युपधिः। (आटी प १७६)
जिसका संग्रह किया जाता है, वह उपधि है। ३४३. उवाद (उपाद) उपादीयंत इति उपादाः।
(सूचू १ पृ १६०) जो ग्रहण किये जाते हैं, वे उपाद/मत हैं। ३४४. उवासग (उपासक)
उपासंति तत्त्वज्ञानार्थमित्युपासकाः। (सूचू २ पृ ३६७)
जो तत्त्वज्ञान की संप्राप्ति के लिए मुनियों की उपासना करते हैं, वे उपासक/श्रमणोपासक हैं । १. उप-समीपे धीयते-ध्रियते सूत्रादिकं येन तपसा तदुपधानम् ।
(प्रसाटी प ६४) जिस तप के द्वारा सूत्र आदि को धारण किया जाता है, वह उपधान (तप) है।
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