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निरुक्त कोश ३३६. उववज्झ (औपवाह्य उपवाह्य) उप्पेध (उवेच्च) सव्वावत्थं वाहणीया उववज्झा ।'
(दअचू पृ २१३) जिसे सब अवस्थाओं में वाहन बनाया जाए, वह औपवाह्य/
हाथी, घोड़ा है। ३३७. उववात (उपपात) आचार्यादीनामुप-समीपे पतनं स्थानमुपपातः । (उशाटी प ४४)
आचार्य आदि के पास में बैठना उपपात है। ३३८. उवसग (उपाश्रय) उपेत्य-आगत्य साधुभिराश्रीयत इत्युपाश्रयः। (बृटो पृ ६२५)
जहां आकर साधु आश्रय लेते हैं, वह उपाश्रय है । ३३६. उवसग्ग (उपसर्ग)
उपसरंतीति उवसग्गा।
जो पास में आते हैं/पीड़ित करते हैं, वे उपसर्ग हैं । उवसृजति वा अनेन उवसर्गाः। (आवचू १ पृ ५३५)
जो (कष्ट का) उपसर्जन करते हैं, वे उपसर्ग हैं । उपसृज्यते--क्षिप्यते च्याव्यते प्राणी धर्मादेभिरित्युपसर्गाः ।
(स्थाटी प ५००) जिनसे प्राणी धर्म से उपसृत/च्युत होते हैं, वे उपसर्ग/
उपद्रव हैं। ३४०. उवहाण (उपधान) मोक्षं प्रति उप–सामीप्येन दधातोति उपधानम् ।
(सूटी १ प ५६) १. (क) कारणमकारणे वा उवेज्ज वाहिज्जति उववज्झा ।
(दजिचू पृ ३१०) (ख) उप-समीपे वाह्यते उपवाह्यः। (अचि पृ २७४)
जिसे पास में लाया जाता है, वह उपवाह्य वाहन है। २. उप–सामीप्ये, सृज-विसर्गे।
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