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निरुक्त कोश २०४. आययण (आयतन) आयरंति तमिति आययणं।
(आचू पृ १६८) जिसका आचरण किया जाता है, वह आयतन/चारित्र है । समस्तपापारम्भेभ्यः आत्मा आयत्यते-आनियम्यते यस्मिन् कुशलानुष्ठाने वा यत्नवान् क्रियते इत्यायतनम्। (आटी प २०६)
जो समस्त पापमय प्रवृत्तियों से आत्मा को नियंत्रित करता है
और कुशल अनुष्ठान में प्रवृत्त करता है, वह आयतन/चारित्र है । २०५. आयरक्ख (आत्मरक्ष) अप्पं रक्खतीति आयरक्खो।
(सूचू २ पृ ३०६) जो आत्मा की/अपनी रक्षा करता है, वह आत्मरक्षक है। - २०६. आयरिअ (आचरित)
आचर्यतेस्म बृहत्पुरुषैरप्याचरितम् । (व्यभा १ टी प ६)
महान् व्यक्तियों ने जिसका आचरण किया है, वह आचरित
२०७. आयरिय (आचार्य)
आयारं आयरमाणा तहा पभासंता।' आयारं संता' आयरिया तेण वुच्चंति ॥ (आवनि ६६४)
जो आचार का आसेवन करते हैं, वे आचार्य हैं। १. आचारो-ज्ञानाचारादिः पञ्चधा आ-मर्यादया वा चारो विहार आचारस्तत्र स्वयं करणात् प्रभाषणात् प्रदर्शनाच्चेत्याचार्याः ।
(भटी प ३,४) जो स्वयं आचार का पालन करते हैं, दूसरों से कराते हैं और आचार की प्ररूपणा करते हैं, वे आचार्य हैं । २. आचारं दर्शयन्तः सन्तः प्रत्युपेक्षणादिक्रियाद्वारेण, मुमुक्षुभिः सेव्यन्ते येन कारणेनाचार्यास्तेनोच्यत इति । (आवहाटी १ पृ २६६)
आचार-विधि का मार्ग-दर्शन देने के कारण शिष्यवर्ग जिनकी सेवा करते हैं, वे आचार्य हैं।
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