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२४५. आसंदी (आसन्दी ) आसनं ददातीत्यासंदी ।
जो आसन देती है, वह आसन्दी / कुर्सी है ।
२४६. आसण (आसन)
आसियते जम्हि तमासणं । '
आस्यते - स्थीयते अस्मिन्निति वाऽऽसनम् । जिस पर बैठा जाता है, वह आसन है ।
२४७. आसम (आश्रम )
गृह हैं
२४८. आसम (आश्रम )
आङिति - स्वपरप्रयोजनाभिव्याप्त्या श्राम्यन्ति - खेदमनुभवन्त्यस्मि - नित्याश्रमाः । ( उशाटी प ३१५ )
जिनमें स्व और पर के लिए श्रम किया जाता है, वे आश्रम /
आसमन्ताद् श्राम्यन्ति —– तपः कुर्वन्त्यस्मिन्नित्याश्रमः ।
२५०. आसव (आश्रव )
निरुक्त कोश
(सूचू २ पृ ३६१)
( निचू १ पृ ६ )
( आटी प १३३ )
जहां तपस्वी श्रम / तपस्या करते हैं, वह आश्रम है । २४. आसव (आश्रव )
आ - समन्तात् शृण्वन्ति — गुरुवचनमाकर्णयन्तीत्याश्रवाः ।
( उशाटी प ४६ ) जो गुरु-वचनों का पूर्णरूप से श्रवण करते हैं, वे आश्रव / आज्ञाकारी शिष्य हैं ।
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( उशाटी प ६०५ )
आश्रवत्यष्टप्रकारं कर्म यैरारम्भस्ते आस्रवाः ।
( आटी प १८१ ) जिन आरम्भों / प्रयत्नों से अष्टविध कर्म का आस्रवण होता है,, वे आश्रव हैं ।
आश्रूयते— उपायते कर्म एभिरित्याश्रवाः । ( प्रसाटी प १३५ ) जिनके द्वारा कर्मों का उपार्जन किया जाता है, वे आश्रव हैं । १. यत्थ यत्थ आसति निसीदति, तं आसनं । (वि १ / ७१)
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