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जो ऋजु / समता को देखता है, वह ऋजुदर्शी है । जो ऋजु / मध्यस्थता से देखता है, वह ऋजुदर्शी है । जो ऋजु / मोक्षमार्ग को देखता है, वह ऋजुदर्शी है । २८८. उज्जुसुअ (ऋजुसूत्र )
ऋजु — प्रगुणम् - अकुटिलमतीतमनागतपरकीयवऋपरित्यागात् वर्तमानक्षण विर्वात स्वकीयं च सूत्रयति-निष्टं कितं दर्शयतीति ( आवमटी प ३६५ )
ऋजुसूत्रः ।
जो अतीत और अनागत से व्यतिरिक्त ऋजु / वर्तमान क्षण को सूत्रित / प्रदर्शित करता है, वह ऋजुसूत्र (नय ) है ।
ऋजु – अतीतानागतपरकीयपरिहारेण प्राञ्जलं वस्तु सूत्रयति - अभ्युपगच्छतीति ऋजुसूत्रः । ( अनुद्वामटी प १६ )
जो वस्तु के ऋजु / शुद्ध स्वरूप को जानता है, वह ऋजुसूत्र ( नय) है |
२८६. उज्जोय ( उद्योत )
उद्योतयतीति उद्योतः ।
निरुक्त कोश
२६०. उज्झ (उज्झ / उध्य )
उद्योतित / प्रकाशित करता है, वह उद्योत है ।
उत्ति उवओगकरणे ज्झत्ति अ झाणस्स होइ निद्देसे । '
जो उष्ट्रिका / विशाल मृत्तिका पात्र में तपश्चरण करते हैं, वे उष्ट्रिकाश्रमण हैं ।
( उशाटीप ३८ )
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जो उपयोगपूर्वक ध्यान करते हैं, वे उज्झ / उपाध्याय हैं । २१. उट्टियासमण ( उष्ट्रिकाश्रमण )
उष्ट्रिका - महामृण्मयो भाजन विशेषस्तत्र प्रविष्टा ये श्राम्यन्तितपस्यन्तीत्युष्ट्रकाश्रमणाः । (ओटी पृ २०१ ) प्रविष्ट हो श्रम /
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( आवनि ९६८ )
१. उ इत्येदक्षरं उपयोगकरणे वर्तते, ज्भ इति चेदं ध्यानस्य भवति निर्देशे, ततश्च प्राकृतशैल्या एतेन कारणेन भवति उज्झा, उपयोगपुरस्सरं ध्यानकर्त्तारः । ( आवहाटी पू २६९ )
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