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निरक्त कोश
३०६. उम्माण (उन्मान) जण्णं उम्मिज्जइ ।
(अनुद्वा ३७८) जिससे तोला जाता है, वह उन्मान है। यदुन्मीयते-प्रतिनियतस्वरूपतया व्यवस्थाप्यते तदुन्मानम् ।
(अनुद्वामटी प १४१) जो वस्तु के स्वरूप को निश्चित करता है, वह उन्मान माप-तोल है। ३१०. उर (उरस्) इति अर्यतेऽनेनेति उरः।
(उचू पृ १५०) जो स्पन्दित होता है, फैलता है, वह उर है। ३११. उरग (उरग) . उरेण गच्छतीति उरगः ।
(उचू पृ २३१) जो उर/वक्षस्थल से चलता है, वह उरग है । ३१२. उरपरिसप्प (उरःपरिसर्प) उरसा-वक्षसा परिसर्पन्ति–सञ्चरन्तीत्युरःपरिसर्पाः ।
(स्थाटी प ५०२) जो उर/वक्ष से परिसर्पण/गमन करते हैं, वे उरपरिसर्प हैं । - ३१३. उरन्भ' (उरभ्र)
उरसा भ्राम्यति बिति वा तमिति उरभ्र'। (उचू पृ १५९)
जो ऊन के साथ चलता है, वह उरभ्र/मेष है ।
जो ऊन को धारण करता है, एह उरभ्र/मेष है । १. urabbha-wool lat. vervex. (पा पृ १५५) २. 'उरभ्र' का अन्य निरुक्तउच्चैरभते उरभ्रः । जो उच्च शब्द करता है, वह उरभ्र है। उरभ्रमतीति उरभ्रः। जो उरु/अधिक घूमता है, वह उरघ्र है।
(अचि पृ २८५)
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