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निरुक्त कोश २५५. आसाविणी (आस्राविनी) आश्रवतीति आश्राविनी।
(सूचू १ पृ २०२) जो झरती है, जो छेदवाली है, वह आस्राविनी (नौका) है। २५६. आसास (आश्वास) आश्वसन्त्यस्मिन्नित्याश्वासः।
(आटी प ५) जिसमें प्राणी सुखपूर्वक श्वास लेते हैं, वह आश्वास/विश्रामस्थल है। आश्वासयीति आश्वासः।
(व्यभा ४/२ टी प ६७) जो आश्वस्त करता है, वह आश्वास/विश्राम-स्थल है। २५७. आसीविस (आशीविष) सप्पस्स दाढा आसी, तीए विसं जस्स सो आसीविसो । (दअचू पृ २०८)
जिसकी आशी/दाढा में विष होता है, वह आशीविष (सर्प) है । २५८. आहरण (आहरण) आहरति तमत्थे विण्णाणमिति आहरणं । (दअचू पृ २०)
जो प्रतिपाद्य का अर्थ में आहरण करता है, वह आहरण उदाहरण है। २५६. आहाकम्म (आधाकर्मन्)
ओरालसरीराणं, उद्दवणऽइवायणं तु जस्सट्ठा। मणमाहित्ता कुव्वति, आहाकम्मं तयं बेन्ति ॥ (जीतभा ११००)
__ मन में विचार कर जिसके लिए औदारिक शरीरवाले प्राणियों का अपद्रवण/पीड़न और अतिपात किया जाता है, वह आधाकर्म है । साधूनामाधया-प्रणिधानेन यत् कर्म षट्कायविनाशेनाशनादिनिष्पादनं तद् आधाकर्म।
(बृटी पृ १४१८) साधुओं को लक्षित कर किया जाने वाला कर्म (अशन आदि का निष्पादन) आधाकर्म है।
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