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निरुक्त कोश २६. अत्त (आत्र)
आ–अभिविधिना त्रायन्ते दुःखाद् संरक्षन्ति सुखं चोत्पादयन्तीति आत्राः।
(भटी पृ १२०४) जो दुःख से त्राण/रक्षा करते हैं और सुख उत्पन्न करते हैं, वे आत्र/आप्त हैं। १०. अत्तगवेसि (आत्मगवेषिन्) अत्ताणं गवसतीति अत्तगवेसिओ।
(दजिचू पृ २६२) जो आत्मा की गवेषणा करता है, वह आत्मगवेषी है। ६१. अत्तपण्णेसि (आत्मप्र षिन्) आत्मप्रज्ञामेषयन्तीति आत्मप्रज्ञैषिणः। (सूचू १ पृ १५२)
जो आत्मप्रज्ञा/आत्मज्ञान की खोज करते हैं, वे आत्मप्रज्ञैषी हैं। १२. अत्तव (आत्मवत्) नाणदंसणचरित्रमयो जस्स आया अत्थि सो अत्तवं । (दअचू पृ १९७)
जिसकी आत्मा ज्ञान,दर्शन और चारित्रमय है, वह आत्मवान्
६३. अत्थ (अर्थ) अर्थ्यत इत्यर्थः।
__(अनुद्वाचूपृ २२) जिसको जानने की इच्छा की जाती है, वह अर्थ है । अर्यतेऽधिगम्यतेऽर्थ्यते वा याच्यते बुभुत्सुभिरित्यर्थः । (स्थाटी प ४६)
___ जो जिज्ञासु द्वारा जाना जाता है अथवा जिज्ञासु जिसको जानने
की याचना करता है, वह अर्थ है। ६४. अत्थाणंतरचारि (अर्थानन्तरचारिन्)
अर्थे-शब्दादाविन्द्रियव्यापारादनन्तरं चरति-व्याप्रियत इत्येवंशीलमर्थानन्तरचारि।
(बृटी पृ १६) जो अर्थ शब्द आदि विषयों में इन्द्रियों की प्रवृत्ति के पश्चात् प्रवृत्त होता है, वह अर्थानन्तरचारी/मन है।
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