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थोकडा संग्रह । mmmmmmmm
नव लोकांतिक देव । पांचवे देवलोक में आठ कृष्ण राजी नामक पर्वत है जिसके अन्तर में ( बीच में) ये नव लोकांतिक देव रहते हैं। इनके नाम-गाथा:
सारस्सय, माइच, वनि, वरूण, गज तोया। तुसीया अव्ववाहा, अगीया, चेव, रीठा, य॥
अर्थः-१ सारस्वत लोकांतिक २ आदित्य लोकां. तिक ३ वहनि लोकांतिक ४ वरूण ५ गई तोया ६ तुपिया ७ अव्याबाध ८ अंगीत्य हरिष्ट । ये नव लोकांतिक देवजब तीर्थकर महाराज दीक्षा धारन करने वाले होते हैं, उस समय कानों में कुण्डल, मस्तक पर मुकुट, बांह पर बाजुबंध, कराठ में नवसर हार पहन कर घुपरियों के घमकार सहित आकर इस प्रकार बोलते हैं-"अहो त्रिलोक नाथ! तीर्थ मार्ग प्रवर्तावो, मोक्ष मार्ग चालु करो।" इस प्रकार बोलने का-इन देवों का जीत व्यवहार (परंपरा से रिवाज चला आता ) है।
नव ग्रीय वेक गथा: भद्दे, सुभद्दे, सुजाए, सुमाणसे, पीयदसणे ।
सुदंसणे, अमोहे, सुपडीबद्धे, जसोधरे ॥
अर्थः-चारहवें देवलोक ऊपर असंख्यात योजन के करोड़ा करोड़ प्रमाणे ऊंचा जाने पर नव ग्रीयवेक की पहली
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