Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
१६ तरह वे भी 'अनास' और 'मृधुवाचः' थे। तथा बड़े सम्पत्तिशाली थे । इलिविश, धुनि, चुमुरि, शम्बर, वरचिन, पिघु आदि दासोंके राजा थे। बादको इनमेंसे कुछको दैत्यराज और इन्द्र तथा अन्य देवताओंका शत्रु मान लिया गया।
किरात, कीकर, चाण्डाल, पर्णाक और सिम्यु वगैरह दास जातियाँ थीं, जो अधिकतर गङ्गाकी घाटीमें रहती थी और जब भरत लोग पूरव और दक्षिण पूरवकी ओर बढ़े तो उनके साथ लड़ी थीं।
ऋग्वैदिक ऋषियोंकी दृष्टि में दास और दस्युमें कोई भेद नहीं था, यह बात इससे स्पष्ट है कि कुछ विशेषण समान रूपसे दोनोंके लिये प्रयुक्त किये गये हैं तथा कुछ व्यक्तियोंको दास और दस्यु दोनों कहा है। ___ऋग्वेदमें ऐसे अनेक दुष्ट आत्माओंकी चर्चा है जो देवोंके शत्रु थे और देवताओंके विरुद्ध लड़े थे। ये देवताओंके शत्रु उत्तरकालीन वैदिक साहित्यमें जिस नामसे सम्बोधित किये गये, वह 'असुर' शब्द ऋग्वेदमें अभी तक भी अपने पुराने अर्थ'आश्चर्यजनक शक्तिका धारी' में मौजूद है। ईरानी उच्चारणकी विशेषताके कारण 'स' का उच्चारण 'ह' होनेसे पारसियोंकी अवेस्तामें यह शब्द 'अहुर' के रूपमें वर्तमान है। ___दास और दस्यु शब्द भी, जो भारतके आदिवासी अनार्योंके लिये भी व्यवहृत हुए हैं. ऋग्वेदमें दुष्टोंके लिये पाये जाते हैं। इनके सिवाय राक्षस और रक्षस शब्द भी हैं। ये सब शब्द वैदिक देवताओंके विरोधियों के लिए प्रयुक्त हुये हैं। ___ ऋग्वेदमें जितनी स्तुति इन्द्रकी है, इतनी अन्य सब देवताओं की मिलकर भी नहीं है। अतः इन्दको वैदिक आर्योंका जातीय देवता कहा जा सकता है। ऋग्वेदकालीन आयी एक लड़ाकू
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