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साक्ष्य - अनुशीलन
२. चरित्र या चरित नामधारी ग्रन्थ :
क्रम सं०
ग्रन्थ का नाम
१. त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र
२. राममल्लाभ्युदय
३. चउप्पन्नमहापुरिसचरिय
४. कहावलि
५. चउप्पन्नमहापुरिसचरिय ( प्राकृत) आम्र ६. चतुर्विंशतिजिनेन्द्रसंक्षिप्त
चरितानि
७. महापुरुषचरित
८. लघु त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित
5. लघुत्रिषष्टि
१०. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र
११.
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१२. विषष्टिशलाकापंचाशिका
१३. त्रिषष्टिशलाकापुरुषविचार
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लेखक का नाम
आशाधर
उपाध्याय पद्मसुन्दर
विमलमति या शीलाचार्य
भद्रेश्वरसूरि
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अमरचन्द्रसूरि
मेरुतुंग
मेघविजय उपाध्याय
सोमप्रभ
विमलसूरि
वज्रसेन
कल्याण विजय के शिष्य
अज्ञात
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रचना-काल सं० १२६२
सं० ६२५
सं० १२४८
सं० ११६०
तक
[६] तिरसठशलाकापुरुषों के स्वतंत्र पुराण : रामायण, महाभारत, कथाओं तथा तिरसठशलाकापुरुषों के पौराणिक महापुराणों या महाकाव्यों और उनके संक्षिप्त रूपों के पश्चात् स्वतंत्र रूप से तीर्थंकरों, चक्रवर्तियों, बलदेवों, वासुदेवों आदि के जीवनचरित भी बहुत लिखे गये । १०वीं से १८वीं शती ई० ये रचनाएँ निर्वाधगति से लिखी जाती रहीं । १२वीं और १३वीं शती ई० में ये रचनाएँ प्रचुर मात्रा में लिखी गयीं, परन्तु आगे की शताब्दियों में भी इनका क्रम चलता रहा । महा पुराण में ऐसी रचनाओं को पुराण की संज्ञा दी गयी है । " तीर्थंकरों में सर्वाधिक रचनाएँ शान्तिनाथ पर हैं । द्वितीय स्थान पर २२वें नेमि तथा २३वें पार्श्वनाथ हैं । तृतीय क्रम में आदि जिन वृषभ, अष्टम चन्द्रप्रभ और अन्तिम तीर्थंकर पर चरित-काव्य प्रणीत हुए। वैसे भी तीर्थंकरों और अन्य महापुरुषों पर चरित्र ग्रन्थ लिखे जाने के छुटपुट उल्लेख मिलते हैं । ये रचनाएँ प्राकृत, संस्कृत तथा अपभ्रंश में लिखी गयी हैं । ये रचनाएँ बहुत बड़ी संख्या में प्राप्त होती
१. महा, १।२२-२३
१२३८ ई०
१३०६ ई०
१८वीं शती
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