Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ફર
भगवती सूत्रे
भदन्त ! जीवा किं क्रियावादिनो भवन्ति अक्रियावादिनो वा भवन्ति अज्ञानिकवादिनो वा भवन्ति चैनयिकवादिनो वा भवन्तीति प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते ! भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'नो किरियाबाई' नो क्रियावादिनः कृष्णपाक्षिका भवन्ति यथावस्थितद्रव्यपर्यायात्मकवस्तु परिच्छेदरहितत्वात् । 'अकिरियावा ft अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि' अक्रियावादिनोऽपि भवन्ति अज्ञानिकवादिनोऽपि भवन्ति तथा वैनयिकवादिनोऽपि भवन्तीति । 'सुकपक्खिया जहा सलेस्सा' शुक्लपाक्षिकाः जीवाः सलेश्यजीववदेव क्रियावादिनोऽपि अक्रियावादिनोऽपि अज्ञानिकवादिनोऽपि चैनयिकवादिनोऽपि भवन्तीति भावः 'सम्मादिट्ठी जहा अलेस्सा' सम्यग्दृष्टयो तथा-अलेश्याः तथैव क्रियावादिनो भवन्ति यथावस्थितद्रव्यपर्यायात्मकवस्तुपरिच्छेदयुक्तत्वात् न तु अक्रियावादिनो भवन्ति न वा अज्ञानिकवादिनो, न वा वैनयिकवादिनो भवन्तीति जीव हैं वे क्या क्रियावादी होते हैं? या अक्रियावादी होते हैं ? या अज्ञानवादी होते हैं? या वैनयिकवादी होते हैं? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! णो किरियाबाई' हे गौतम कृष्णपाक्षिक जीव क्रियावादी नहीं होते हैं, क्यों कि ये यथावस्थित द्रव्यपर्यायात्मक वस्तु के वेदन से रहित होते हैं। इसलिये ये 'अकिरियावाई वि अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि' ये अक्रियावादी भी होते हैं, अज्ञानवादी भी हैं और वैनयिकवादी भी होते हैं, 'सुक्कपक्खिया जहा सलेस्सा' शुक्लपाक्षिक जीव सलेश्य जीव के जैसे क्रियावादि भी होते हैं, अक्रियावादी भी होते हैं, अज्ञानवादी भी होते हैं और वैनयिकवादी भी होते हैं ! 'सम्मदिट्ठी जहा अलेस्सा' सम्यग्दृष्टि जीव अलेश्य जीव के जैसे यथावस्थित द्रव्यपर्यायात्मक वस्तु के परिच्छेदक होने से क्रियावादी ही होते हैं । अक्रियावादी, अज्ञानवादी और वैनयिकवादी
અથવા અજ્ઞાનવાદી હાય છે? અથવા વૈયિકવાદી હોય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमां अनुश्री उडे छे - 'गोयमा ! णो किरियावाई' हे गौतम! ष्णुપાક્ષિક જીવ ક્રિયાવાદી હાતા નથી, કેમ કે તેઓ યથાસ્થિત દ્રશ્ય પર્યાયાवस्तुनी वेहनाथी रहित होय छे. 'अकिरियावाई वि, अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि' महिमावाही यालु होय छे, अज्ञानवाही पशु होय छे, मने वैनयिवाही पशु होय छे. 'सुक्कपक्खिया जहा सलेस्सा' ससेश्य कवना उथन अभाषेन शुश्चाक्षिने पशु सम सेवा 'सम्मादिट्ठी जहा अलेस्सा' सम्यगदृष्टि વાળા જીવે લેશ્યાવિનાના જીવાના કથન પ્રમાણે યથાવસ્થિત દ્રવ્ય પર્યાયાત્મક વસ્તુના પરિચ્છેદક હાવાથી ક્રિયાવાદીજ હોય છે, તેએ અક્રિયાવાદી, અજ્ઞાન વાદી અને વેંનિયકવાદી હાતા નથી
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭