Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 742
________________ प्रमेयचन्द्रिका तरीका श०४१ ३.२ राशियुग्मयोजनरथिकोत्पत्तिः ७९ प्रश्नः, उत्तरमाह-एवं चेव उसओ भाणियध्वो एवमेव प्रथमो देशकवदेव द्वितीपो. देशकोऽपि मणितव्यः । प्रथमोद्देश के यथा यथा कथितं तत्सर्वमिहापि तथैव वक्त ध्यमिति । प्रथमोद्देशकापेक्षया द्वितीये बैलक्षण्यं दर्शयति-'नवरं' इत्यादि, 'नवरं परिमाणं तिमि वा सत्त वा एक्कारस वा पंचदस वा संखेज्जा वा, असंखेजा या उववज्जति' नवर परिमाणं त्रयो वा सप्त वा एकादश वा, पञ्चदश चा, संख्याता वा असंख्यातावोत्पद्यन्ते इति । 'संतरं तहे।' सान्तरमुत्पधन्ते निरन्तरं वोत्पधन्ते इत्यस्योत्तरं प्रथमोद्देशकवदेव ज्ञातव्यमिति । 'तेणं भंते ! जीवा' ते खलु भदन्त ! राशियुग्म ज्योज जीवाः 'जं समयं तेओगा तं समयं कडजुम्मा' यस्मिन् है ? क्या वे नैरयिकों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत् देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? 'एवं चेव उद्देस भो भाणिय. ध्वो' हे गौतम ! इस सम्बन्ध में जेसा प्रथम उद्देशक कहा गया है उसी प्रकार से यह द्वितीय उद्देशक भी कह लेना चाहिये । परन्तु उसकी अपेक्षा जो यहां भिन्नता है वह 'नवरं परिमाण तिन्नि वा सत्त वा एकारस वा पंचदसवा संखेजावा असंखेजावा उववज्जति' इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गई है-इससे यह प्रकट किया गया है कि राशियुग्म नैरयिक एक समय में तीन, अथवा सात अथवा ग्यारह अथवा पन्द्रह अथवा संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं। 'संतर तहेव' ये नारक सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? इस सम्बन्ध में उत्तर प्रथम उद्देशक में जैसा कहा गया है અથવા તિર્યચનિકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા દેવોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री जोतभस्वामीन छ -'एवं चेव उदेस्रो भाणियवो' है गौतम! समयमा पसा उद्देशामा २ प्रमाणेनुं थन ४२. વામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન આ બીજા ઉદ્દેશામાં પણ કહી લેવું જોઈએ. પરંતુ પહેલા ઉદેશાના કથન કરતાં આ ઉદ્દેશામાં જે ફેરફાર આવે छ, ते 'नवर परिमाण तिन्नि वो सत्त वा एक्कारस वा पंचदस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जति' मा सूत्रपा द्वारा महियां प्रगट ४२वामा मावस છે.-આ સૂત્રપાઠથી એ બતાવેલ છે કે-રાશિયુમ વ્યાજ નિરયિક એક સમયમાં ત્રણ અથવા સાત અથવા અગિયાર અથવા પંદર અથવા समयात मया असण्यात उत्पन्न थाय छे. 'सतर तहेव' माना। સાંતર-અંતર સહિત પણ ઉત્પન્ન થાય છે. અને નિરંતર પણ ઉત્પન્ન થાય છે. मा विषय समधी उत्त२ ५७सा शाम या प्रमाणे नछे. ते ण શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭

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