Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 765
________________ ७४२ भगवतीसरे जहा ओहि उद्देसएसु' नवरं मनुष्याणां गमकः प्रकारो यथा औधिकोदेश केषु एतस्यैव शतकस्य प्रथमोदेशके कथित स्तथैव ज्ञातव्यः । 'सेसं तं चेव शेषं तदेवपूर्व वदेव ज्ञातव्यमिति । एवं एए छसु लेस्सामु चउवीसं उद्देसगा' एवम् उपरोक्त प्रकारेण एते उद्देशका षट्सु लेश्यासु चतुर्विशति भवन्ति । प्रत्येकलेश्यानां कृतयुग्मादि चतुश्चतुरुद्देशकसद्भावात् । 'ओहिया चत्तारि' औधिकाश्चत्वार उद्देशका भवन्ति । 'सवे ते अठ्ठावीसं उद्देसगा भवंति' सर्वे ते सङ्कलनया अष्टाविंशतिरुद्देशका भवन्तीति। 'सेव भंते ! सेव भंते ! त्ति' तदेव भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति । ॥ एकचत्वारिंशत्तमे शतके २१-२८ उद्देशकाः समाप्ताः ॥ उसी पद्धति से शुक्ललेश्या में भी चार उद्देशक कह लेना चाहिये । तथा इन सब में आलाप प्रकार स्वयं ही उद्भावित कर लेना चाहिये। परन्तु मनुष्यों के सम्बन्ध में गमक प्रकार जैसा औधिक उद्देशक में कहा जा चुका है वैसा ही यहा वक्तव्य हुआ है। यही बात 'नवरं मणुस्साणं गमओ जहा ओहि उद्देसए' इस सूत्रपाठ द्वारा यहां समझाई गई है । 'सेस तं चेव' बाकी का और सब कथन पूर्व के ही जैसा है । 'एवं एए छसु लेस्सासु चवीसं उद्देसगा' इस प्रकार छह लेश्याओं के सम्बन्ध में समस्त उद्देशक २४ होते हैं। क्योंकि प्रत्येक लेश्या में प्रत्येक लेश्यावालो में कृतयुग्मादिरूप चार चार उद्देशक हैं। तथा-'मोहिया चत्तारि' औधिक उद्देशक ४ हैं। इस प्रकार से सव આલાપને પ્રકાર સ્વયં બનાવીને સમજી લેવો જોઈએ પરંતુ મનુષ્યોના સંબં. ધમાં ગમકેને પ્રકાર ઔઘિક ઉદ્દેશામાં એટલે કે-આ ભગવતી સૂત્રના એકતાળીસમા શતકના પહેલા ઉદેશામાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે, એ જ प्रभानु थन सम पु. मे४ पात 'नवर मणुस्खाणे गम भो जहा ओहि उद्देसए' मा सूत्र५।४।२। मडिया समवेa छ, 'सेस तचेव' मानुं भी तमाम उथन पडता हा प्रभागेनुं छे. 'एवं एए छसु लेस्सासु चउवीसग' उसगा' शत भा छ वेश्यामाना समयमा सघा भजीन २४ यावीस ઉદેશાઓ થઈ જાય છે કેમ કે દરેક લેામાં–એટલે કે દરેક લેશ્યાવાળા भामा तयुभ तयुमा ३५ यार या२ शा। थाय छे. तथा 'ओहिया જરા ઓધિક ઉદેશાઓ ૪ ચાર છે. આ રીતે બધા મળીને ૨૮ અઠયાવીસ ઉદેશાઓ થઈ જાય છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૭

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