Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 760
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका रा०४१ उ.१३-१६ कापोतलेश्यादिचत्वारो देशकाः ७३७ लेश्यैवस्वार उद्देशकाः कथिता एवमेव कापोतलेइयैरपि चत्वार उद्देशकाः कर्तव्याः कापोतलेsय कृतयुग्मनारकादेः प्रथमः कापोतलेsय योजनारकादे द्वितीयः, कापोसलेश्य द्वापरयुग्मनारकादेस्तृतीयः, कापोलेश्य कल्योजनाका देवतुर्थीदेशकः । 'नवरं नेरहयाणं उनवाओ जहा रयणप्पभाए' नवरं पूर्वापेक्षया कापोतलेश्य प्रकरणे इदमेव वैलक्षण्यं यत् अत्र नारकाणामुपपातो रत्नप्रभायामिव वक्तव्यः । बाले नैरयिकों के जैसे चार उद्देशक हैं जो इस प्रकार से हैं । जैसेकृतयुग्म राशिप्रमितवाले नैरयिकों का प्रथम उद्देशक है। ज्योजराशिप्रमित कापोतावाले नरविकादिकों का द्वितीय उद्देशक है। द्वापरयुग्म राशिप्रमित कापोतलेइयावाले नैरयिकों का तृतीय उद्देशक है और कल्पोजराशिप्रमित कापोत लेइयावाले नैरयिकों का चतुर्थ उद्देशक है । 'नवर' नेरइयाणं उवधाओ जहा रयणप्पभाए' परन्तु कृष्णलेश्य प्रकरण की अपेक्षा इस कापोतलेश्या प्रकरण में यदि कोई विलक्षणता है तो वह उपपात की अपेक्षा से है-यही बात 'नवर' नेरइयाणं उववाओ जहा रयण पभाए' इस सूत्र द्वारा प्रकट की गई है। अतः यहां उपपात रत्नप्रभा पृथिवी में जैसा बतलाया गया है- वैसा ही कहना चाहिये । 'सेसं तं चेव' उपपात से अतिरिक्त और सब कथन कृष्णलेश्य प्रकरण के जैसा ही है । 'सेव' भंते! सेव' भते । त्ति' हे भदन्त ! आप લેફ્સાવાળા નૈયિકાના સ...મધમાં પણ કૃષ્ણવેશ્યાવાળા નૈરયિકાના કથન પ્રમાણેના ચાર ઉદ્દેશાઓ કહ્યા છે જે આ પ્રમાણે છે,-જેમકે-કૃતયુગ્મ રાશિપ્રમાણ કાપે!તલેશ્યાવાળા નૈયિકાના સંબંધમાં પહેલે ઉદ્દેશેા કહેલ છે. ૧ ચૈાજ રાશિપ્રમાણ કાપાતલેશ્યાવાળા નૈરિયકાના સંબધમાં ખીજે ઉંદેશા કહેલ છે. ૨ દ્વાપરયુગ્મ રાશિપ્રમાણ કાપાતલેશ્યાવાળા નારિયેકાના સ'ખધમાં ત્રીજો ઉદ્શા કહેલ છે. ૩ અને કયેાજ રાશિપ્રમાણ કાપાતલેશ્યા बाजा नैरथिना सभधभां याथो उद्देशा ! हे 'नवर' नेरइयाणं उबवाओ जहा रयणप्पभाए' परंतु ष्णुश्याना अउर ४२ भा अतश्या अरमां જે કાંઈ વિલક્ષણપણ છે, તે તે ઉપપાતના સબંધમાં કહેલ છે. એજ વાત 'नवर' नेरइयाणं उववाओ जहा रयणप्पभाए' या सूत्रपाठ द्वारा अगर उस छे. જેથી અહિયાં ઉપપાત રત્નપ્રભા પૃથ્વીના સંબંધમાં જે પ્રમાણે કહેવામાં आवेस छे, से ४ प्रभा मडियां डेवु लेाये. 'सेस' त' चेव' उपयातना थन કશ્તાં માકીનું સઘળું કથન કૃષ્ણલેશ્યાના પ્રકરણની જેમ જ છે. તેમ સમજવુ'. 'सेव भवे ! सेव' भ'ते ! त्ति' हे भगवन् याय देवानुप्रिये या संबंधां भ० ९३ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭

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