Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 731
________________ भगवती सूत्रे ७०८ स्पद्यन्ते एतत्पर्यन्तं पञ्चविंशतिशतकीयाष्टमोदेशक प्रकरणमिहाध्येतव्यमिति । 'ते णं भंते ! जीवा किं आयजसेणं उत्रवज्जंति आयअजसेणं उववज्जंति' ते खलु भदन्त ! जीवाः किमात्मयशसा उत्पद्यन्ते आत्मनः सम्बन्धि यशः यशःकारणत्वात् आत्मनः यशः- संयम आत्म यश स्तेन आत्मयशसा समुत्पद्यन्ते अथवा आत्मनोऽयशसा समुत्पद्यते ? इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि' 'गोयमा' हे गौतम! 'नो आवज सेणं उनवज्जंति आप अजसेणं उववज्जंति' नो आत्मयशसा उत्पद्यन्ते किन्तु आत्माऽयशसोत्पद्यन्ते इह च सर्वेषामात्माऽयशसेवोत्पत्ति भवति उत्पतौ सर्वेषामविरत्वादिति । 'जह आय अनसेणं उनवज्जंति किं आयजसं उनजीवंति आय अजसे उनजीवंति' यदि आत्माऽयशसा उत्पद्यन्ते तदा किमात्म पायेन' इस पाठ से लेकर 'आत्मप्रयोगेण उत्पद्यन्ते' इस पाठ तक पच्चीस वे शतक का अष्टमोदेशक प्रकरण यहां ग्रहण कर लेना चाहिये । 'ते ण भते ! जीवा किं आयजसेणं उववज्जंति' हे भदन्त । ये जीव क्या अपने यश से उत्पन्न होते हैं ? अथवा 'आय अजसेणं' उववज्जंति' अथवा अपने असंयम से उत्पन्न होते हैं ? 'गोयमा ! नो आयजसेण उववज्जति, आय अजसेण उववज्जंति' हे गौतम ! वे अपने संयम से उत्पन्न नहीं होते हैं, किन्तु अपने असंयम से उत्पन्न होते हैं । यहां समस्त जीवों की उत्पत्ति अपने असंयम से ही होती है । क्योंकि उत्पत्ति में यहां समस्त जीवों की अविरत अवस्था ही कारण है । 'जइ आय अजसेणं उबवज्जंति' किं आयजस उबजीवंति' आय अजसं उवजीवंति यदि वे आत्म संयम से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे आत्म संयम का आश्रय करते हैं ? अथश आत्म असंयम का आठमा उद्देशानी लड्डामाय उरेल छे, तो त्याथी 'अध्यवसानयोगनिवर्तितेन करणोपायेन' मा पाथी ने 'आत्मप्रयोगेण उत्पद्यन्ते' मा पाहे सुधी परीस શતકના આઠમા ઉદ્દેશાનુ કથન અહિયાં ગ્રહણ કરીને કહેવુ જોઇ એ. ‘તે ' भते ! जीवा आयजसेण उववज्जति' हे भगवन् ते को शु पोताना यशथी संयमथी उत्पन्न थाय छे ? अथवा 'आय अजदेण' उववज्जति' अथवा पोताना असयभथी उत्पन्न थाय छे ? उत्तरमा प्रलुश्री छे - 'गोयमा ! नो आयज सेण उववज्जति, आय अजसेण उववज्जति' हे गौतम! तेथे पोताना संयमथी ઉત્પન્ન થતા નથી. પરંતુ પેાતાના અસંયમથી જ ઉત્પન્ન થાય છે, કેમ કે 'जइ आय अजसेणं उवजीवंति किं आयजसं उवर्जीवंति आय अजसं उयजीवंति' ले ते मात्म असंयमथी उत्पन्न થાય છે, તેા શુ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭

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