Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 730
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०४१ उ.१ राशियुग्मनिरूपणम् ७०७ उत्तरमाह-'णो इणडे सम?' नायमा समर्थः, इत्युत्तरम्. युक्तिः पूर्वोक्तत्र 'तेणे भंते ! जीवा कहिं उज्जति' ते खलु भदन्त ! जीवाः कथमुत्पधन्ते इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोषमा' हे गौतम ! 'से जहानामए पत्रए पवमाणे एवं जहा उवत्रायसए जाव नो परप्पओगेणं उववज्जति' स यथानग्मकः प्लवका प्लश्मानः एवं यथा उपपातशत के भगवत्या एवं त्रिंशत्तमशत के प्रथमो देशके कथित तथाऽत्रापि ज्ञातव्यम् कियत्पर्यन्त तत्राह-'जाव' इत्यादि, यावत् 'नो परप्पओगेणं उववज्जति' नो परमयोगेणोत्पद्यन्ते एतत्पर्यन्तम् उपपातशतकमत्राध्येतव्यम् एकत्रिंशत्तमशतके पञ्चविंशतिशतकीयाष्टमोद्देशकस्यातिदेशो विद्यते तथा च अध्यवसानयोगनिर्वत्तितेन करणोपायेनेत्यारभ्य आत्ममयोगेणो. वाच्य होते हैं ? क्या यह प्रश्न भी 'जो इणढे समठे' सूत्र के अनु. सार हे गौतम! समर्थित नहीं हुआ है। ___ 'ते ण भंते ! जीवा कहिं उववज्जति' हे भदन्त ! वे जीव कैसे किस प्रकार से उत्पन्न होते हैं ? 'गोयमा ! से जहानामए पवए पवमाणे एवं जहा उववायसए जाव नो परप्पओगेण उववज्जति' हे गौतम ! जैसे कोई एक प्लवक कूदता कूदता अपने स्थान से आगे के स्थान पर पहुंच जाता है-इत्यादि रूप से जैसा उपपात शतकमें इसी भगवती के ३१ वे शतक में प्रथम उद्देशक में कहा गया है वह यहां पर कह लेना चाहिये । 'जाव नो परप्पओगेण उववति ' इस सूत्रपाठ तक तात्पर्य कहने का यह है कि ३१ वे शतक में पच्चीस वें शतक के आठवें उद्देशकका अतिदेश है मो वहां के 'अध्यवसान योग निर्वनितेन करणो. कृतयुम ५४थी युटत छ १ । प्रश्न ५ णो इणद्वे सम?' म। सूत्र पाना કથન પ્રમાણે છે ગૌતમ સમર્થિત થયેલ નથી. ___ ण भते ! जीवा कहिं उबवज्जति' हे भगवन् वी शते त्पन्न .५ छे ? उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'गोयमा ! से जहानामए पवर पवमाणे एवं जहा उववायसए जाव नो परपप्प भोगेण उबवजति' 3 ગૌતમ! જેમ કેઈ એક કૃદનાર પુરૂષ કૂદતે કૂદતે પિતાના સ્થાનથી આગળના સ્થાન પર પહોંચી જાય છે, વિગેરે પ્રકારથી જે પ્રમાણે ઉપપાત શતકમાં એટલે કે આ ભગવતી સૂત્રના ૩૧ એકત્રીસમા શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં કહેવામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું સઘળું કથન અહિયાં સમજી લેવું. 'जाव नो परप्पओगेण उववज्जति' मा सूत्रमा सुधी ते ४थन xsi aj. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે એકત્રીસમાં શતકમાં પચ્ચીસમા શતકના શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭

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