Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 648
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०४० अ. श.१ कृ. कृ. संशिपञ्चेन्द्रियोत्पातः • साक्षपञ्चन्द्रियोत्पातः ६२५ एवमत्रापि एकादशोदेशकास्तथैव प्रथमातृतीयः पश्चमश्च सहशगमाः शेषा अष्टावपि सदृशगमाः। चतुर्थषष्ठाष्टमदशमेषु नास्ति विशेषः कर्त्तव्यः । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त इति ॥ ॥चत्वारिंशत्तमे शतके प्रथमं संज्ञिपश्चेन्द्रियमहायुग्मशतम्, समाप्तम् ॥४०-१-१२॥ टीकार्थ-कडजुम्मकडजुम्म सन्निपंचिंदिया भंते ! को उनवज्जति' कृतयुग्म कृतयुग्म संज्ञि पञ्चेन्द्रियाः खलु भदन्त ! कुत आगत्योत्पद्यन्ते इत्यादि, उत्तरमाइउववाओ' इत्यादि, 'उववाओ च उसु वि गईसु' उपपातश्चतसृभ्योऽपि गतिभ्यः, अत्र सूत्रे पञ्चम्यर्थे सप्तमी, हे गौतम! त इमे कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञिपञ्चेन्द्रियजीवाः नरकेभ्योऽपि आगत्य एतादृशःश्चेन्द्रियतया उत्प यन्ते तिर्यग्भ्यो वा आगत्य मनु. ज्येभ्यो वा आगत्य देवेभ्यो वा आगत्य समुत्पद्यन्ते इति भावः। 'संखेज्जवासा. उय असंज्जवासाउय पज्जत्त अपज्जत्तएसुन को वि पडि से हो जाव अणुत्तर शतक ४० 'कडजुम्मकडजुम्म सनि चिंदियाण मते ! को उववज्जति' इ. टीकार्थ-हे भदन्त ! कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पश्चेन्द्रिय जीव किस स्थानविशेष से आकर के उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा तिर्यग्योनिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा मनुष्यों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? 'उपचाओ च उसु वि गहसु' हे गौतम ! कृतयुग्मकृतयुग्म राशि प्रमाण संज्ञिपश्चेन्द्रियजीव नैरयिकों में से आकर के उत्पन्न होते है । तिर्यग्योनिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं। मनुष्यों में से भी आकर के उत्पन्न होते हैं और देवों में से आकर के ચાળીસમા શતકનો પ્રારંભ– 'कडजुम्म कडजुम्ममसन्निपंचिंदियाण भंते ! को उववज्जति' त्या ટીકાર્થ–હે ભગવદ્ કૃતયુમ કૃતયુગ્મ સંજ્ઞીપંચેન્દ્રિયજીવ કયા સ્થાન વિશેષથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? શું તેઓ નરયિકોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? કે તિયચ નિકોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન થાય છે? અથવા દેવોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી छ ४-'उववाओ चउसु वि गइसु' गौतम! कृतयुग्म तयुम्भ राशिवाय સંસી પંચેન્દ્રિય જીવે નરયિકમાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે તિયચ નિકમાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે, મનુષ્યમાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન थाय छे. मन माथी भावाने ५६ ५.न थाय छे. 'सखेज्जवासाउय असं. खेज्जवासाउय पज्जत्त अपज्जत्तएसु य न क श्री वि पडिसेहो जाव अणुत्तरविमाणत्ति' भ० ७९ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭

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