Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 724
________________ प्रमैयचन्द्रिका का श०४१ उ.१ राशियुग्मनिरूपणम् ७०१ प्रज्ञप्ताः ? युग्मशब्दो युगलवाचकोऽपि अस्ति इत्यतोऽसौ इह राशिशब्देन विशेष्यते तेन राशिरूपाः युग्माः न तु द्वितीयरूपा इति राशियुग्माः, ते संख्यया कतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'त्तारि रासिजुम्मा पन्नता' चत्वारः राशियुग्मा: प्रज्ञप्ताः-कथिताः। 'तं जहा' तद्यथा'कड जुम्मे जाव कलिओगे' कृतयुग्मो यावत् कल्योजः अत्र यावत्पदेन योज द्वापरयुग्मयोः संग्रहः । तदे। मूत्रकारः स्पष्ट पति-'से केणणं भने ! एवं वुच्चइ चत्तारि रासिजुम्मा पन्नत्ता तं जहा ज व कलिओगे' तत्केनार्थेन भदन्त ! एरमुच्यते चत्वारो राशियुग्माः प्रज्ञप्ताः तद्यथा यारत् कल्योजः, अत्र यावत्पदेन कृत. युग्मयोज द्वापरयुग्माना संग्रहो भवतीति प्रश्नः । भगवानाह-'गोरमा' इत्यादि, टीकार्थ-हे भदन्त ! राशियुग्म कितने कहे गये हैं ? युग्म शब्द युगल का भी वाचक होता है इसलिये उसे यहां राशि शब्द से विशे षित किया गया है। अतः राशिरू जो युग्म हैं वे राशियुग्म हैं किन्तु द्विकरूप ये राशियुग्प नहीं है । ये संख्या में कितने होते हैं ? ऐसा यह प्रइन है । इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोयमा ! चत्तारि रासिजुम्मा पभसा' हे गौतम ! चार राशिरूप युग्म कहे गये हैं । 'तं जहा' जैसे'कडजुम्मे जाव कलि भोगे' कृतयुग्म यावत् कल्पोज यहां यावत् पदसे योज और द्वापर युग्म इनका ग्रहण हुआ है। गौतमस्वामो अथ प्रभुश्री से ऐसा प्रश्न करते हैं-'से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ चत्तारि रासि जुम्मा पत्ता तं जहा कडजुम्म जाव कलिओगे' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण ले कहते हैं कि कृतयुग्म से लेकर ટીકાર્યું–હે ભગવન રાશિ યુગે કેટલા પ્રકારના કહેવામાં આવેલ છે? યુમ શબ્દ યુગલને વાચક પણ હોય છે. તેથી તેને અહિયાં રાશિ શબદથી કહેવામાં આવેલ છે. જેથી રાશિ રૂપ જે યુગ્મ છે, તે રાશિયુગ્મ છે. બે રૂપ યુગ્મ રાશિયુમ નથી, તે સંખ્યામાં કેટલા હોય છે? આ રીતને અહિં ગૌતમસ્વામીએ પ્રશન કરેલ છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને ४३ छ है - 'गोयमा ! चत्तारि रासि जुम्मा पन्तत्ता' 3 गौतम ! राशियुभ यार मारना अवामां आवहे. 'जहाभ-क डजुम्मे जाव कलिओगे' तयु થાવત્ કજ અહિયાં યાત્પદથી વ્યાજ અને દ્વાપરયુગ્મ ગ્રહ કરાયેલ છે. गीतमस्वामी प्रभुश्रीन से छे छे 3-'से केणट्रेण भंते ! एवं वुच्चइ चत्तारि रासिजुम्मा पन्नत्ता त जहा कडजुम्मकडजुम्म जाव कलिओगे' समपन् આપ એવું શા કારણથી કહે છે કે કૃતયુગ્મ કૃતયુગ્મથી લઈને કાજ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭

Loading...

Page Navigation
1 ... 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803