Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 700
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० अ. श.११-१४ भवसिद्धिकसप्तशतकानि ६७७ कापोत-तेजा-पद्म-शुक्ललेश्याविशिष्टानि चत्वारि शतानि एवं सङ्कलितानि सप्तशतानि प्रत्येकमेकादशोदेशकगमितानि क्रमेण कर्त्तव्यानि। आलापमकारस्तु सर्वत्र पूर्वत्रदेव कर्तव्य इति । 'नवरं सत्तम् वि सब्ध पाणा जाव णो इणढे समढे' नवर-केवलमौधिकशतापेक्षया इदमेव लक्षण्यं यत् सप्तस्वपि शतेषु सर्वे पाणा यावत् सर्वे सत्त्याः औधिक भवसिद्धिककृष्णलेश्यादिक भवसिद्धिकतया समुत्पन्नपूर्वाः किमिति प्रश्नं कृत्वा नायमर्थः समर्थः, एवं रूपेण सर्वत्रापि उत्तर मुन्नेयम्, सेसं तं चे' शेषं नबर-मित्यनेन यद्वैलक्षण्यं प्रतिपादित ततोऽन्यत् सर्वम्-औधिक संक्षिपञ्चेन्द्रियस शतसदृशमेव ज्ञातव्यमिति । 'सेव भंते ! सेव भंते ! ति' तदेवं भदन्त ! २ इति । ॥चत्वारिंशत्तमे शतके एकादशशतादारभ्य चतुर्दशशतपर्यन्तं चत्वारि संज्ञिमहायुग्मशतानि समाप्तानि ॥४०-११-१४॥ केवल कापोत, तेज, पद्म और शुक्ल इन लेश्याओं से विशिष्ट चार ही शत कहे हैं । अतः सब मिलकर कुल सात शत हो जाते हैं। ये सात शत हैं प्रत्येक शत ११ उद्देशक कों से युक्त हैं । अतः इन में प्रत्येक में आलाप प्रकार पूर्व में जैसा कहा गया है वैसा कहलेना चाहिये 'नवरं सत्तस्तु वि सएस्सु सव्वपाणा जाव गो इणद्दे समझे' परन्तु यहां ऐसा नहीं कहना चाहिये कि समस्त प्राण यावत् समस्त सत्व औधिक भवसिद्धिक रूप से अथवा कृष्णलेश्यावाले भवसिद्धिक रूप से पहिले यावत् अनन्तवार उत्पन्न हो चुके हैं। यही विलक्षणता यहां औधिकशत की अपेक्षा से है । 'सेसं तं चेय' बाकी का और सब कथन औधिक संज्ञी पञ्चेन्द्रिय सप्त शत के जैसा ही है । 'सेवं भंते ! सेवं भंते !त्ति' हे भदन्त ! जैसा आपने यह कहा है वह सब सर्वथा सत्य ही है २। પદ્મ અને શુકલ આ વેશ્યાઓથી યુક્ત ચાર શતકે જ કહેલા છે. તેથી બધા મળીને કુલ ૭ સાત શતકો થઈ જાય છે. આ સાતે શતકમાં-દરેક શતકમાં ૧૧–૧૧ અગિયાર અગિયાર ઉદ્દેશાએ કહેલા છે. તેથી દરેકમાં આલાપકોને १२ पडत हा प्रमाणे। सभा 'नवर सत्तसु वि सएसु सव्वाणा जाव नो इणटे समढे परतु मडियां से प्रमाणे हे न.-सघणा पाये। યાવતુ સઘળા સ ઔઘિક ભવસિદ્ધિક પશુથી અથવા કૃષ્ણલેશ્યાવાળા ભવસિદ્ધિક પણાથી પહેલાં યાવત અનંતવાર ઉત્પન્ન થઈ ચૂકેલ છે. ઔધિક शता ४थन २di मडिया ये हा छ. 'सेस त चेव' माडीन બીજુ સઘળું કથન ઔધિક પંચેન્દ્રિય શતકના કથન પ્રમાણે જ છે. 'सेव भंते ! सेव भंते ! त्ति' सावन माप वानुप्रिये या विषयमा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭

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