Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०४० अ, श.१५ अभव० संशिपञ्चेन्द्रियजीन० १८१ या जाय मुक्कलेस्सा वा' इमे अभवसिदिकाः कृष्णलेश्या भवन्ति यावत् शुक्ललेण्या वा भवन्ति यावत् पदेन नीलकापोततेजःपदमलेश्यानां संग्रहो भवतीति । 'नो सम्मरिही' इमे अभवसिदिका नो सम्यग्रयो भवन्ति किन्तु 'मिच्छादिट्टी' मिध्यादृष्टयो भवन्ति 'नो सम्मामिच्छादिष्टी' नो नवा सम्यग्मिध्याएष्टयो मिश्रयो भवन्तीति । 'नो नाणी अन्नाणी' नो ज्ञानिनो भवन्ति, किन्तु अज्ञानिनः तत्रापि नियमसो व्यज्ञानिनः मत्यज्ञानिनः श्रुताशानिनो विभज्ञानिन अति । 'एवं जहा कण्णलेस्सस' एवं यथा कृष्णलेश्यशतके कथित तथैवात्रापि एतस्यैव द्वितीयशते ज्ञातव्यमिति । कृष्णलेश्यशतापेक्षया यद्वलक्षण्यं तद्वक्ति 'नवरं नो विरया अविरया नो विरयाविरया, नवरं विशेषस्तावदयम्-इमे अभववा' 'ये अभवसिद्धिक जीव कृष्णलेश्यावाले होते हैं यावत् शुक्ललेश्यावाले होते हैं। यहां यावत्पद से 'नील, कापोत तेजः और पद्मलेश्याओं का संग्रह हुआ है। 'नो सम्मद्दिष्टि 'ये सम्यग्दृष्टि नहीं होते हैं । किन्तु-'मिच्छादिष्टि' मिथ्यादृष्टि ही होते हैं । 'नो सम्मामिच्छा. दिट्ठी' ये मिश्रदृष्टि भी नहीं होते हैं । 'नो नाणी, अन्नाणी' ये ज्ञानी नहीं होते हैं अज्ञानी ही होते है। अज्ञान में इनके तीन अज्ञान होते हैं-मति अज्ञान श्रुत अज्ञान और विभंगज्ञान ये तीन अज्ञान होते हैं 'एवं जहा कण्दलेस्ससए' इस प्रकार से जैसा कृष्णलेश्य शतक में कहा गया है वैसा ही यहां पर समझना चाहिये । कृष्णलेश्यशत इसी ४० वे शतकका द्वितीय शत है। 'नवरं नो विरया अविरया, नो विरया विरया' कृष्णलेश्य शतकी अपेक्षा यहां जो अन्तर आता है
જી કૃષ્ણલેશ્યાવાળા હોય છે. નીલલેશ્યાવાળા હોય છે કાપતલેશ્યાવાળા હોય છે. તેજલેશ્યાવાળા હોય છે. અને પદ્મશ્યાવાળા હોય છે તથા શુકલ सेश्यावा डाय छे. 'नो सम्मदिवी' सभ्यष्टि डात नथी. परंतु 'मिच्छादिदी' मिथ्याष्टा डाय छे. 'नो सम्मामिच्छादिदी' तया भिटवासाता नथी. 'नो नाणी अन्नाणी' तो ज्ञानी ५५y lu નથી. અજ્ઞાની હોય છે, તેઓને અજ્ઞાનમાં મતિજ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાન એ બે ४ अज्ञान हाय छे. तभन वि अज्ञान हेतु नथी. 'एवं जहा कण्हलेसमए' એજ પ્રમાણે કૃષ્ણદેણ્યા શતકમાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે. એ જ પ્રમાણે અહીયાં પણ સમજવું કૃષ્ણલેશ્યા શતક આ ૪૦ ચાળીસમા શતકનું भी शत छ. 'नवरं नो विरया अविरया नो विरयाविरया' श्याशतनी
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૭