Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 666
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०४० अ. श.१७.समय कृ.कृ. संक्षिपञ्चेन्द्रियोत्पातः ६४३ द्देशकाः ज्ञातव्याः। तत्र 'पढमो तइओ पंचमो य सरिसगमा' प्रथमस्तृतीयः पञ्चमश्च सदृशगमा एकालापका इत्यर्थः । 'सेसा अट्ठवि सरिसगमा' शेषा अष्टावपि द्वितीयचतुर्थषष्ठसप्तमाष्टम नवम दशमैकादशाख्याः सदृशगमा समानाः । 'चउत्थ छट्ट अहम दसमेसु नस्थि विसेसो काययो' चतुर्थ षष्टाष्टम दशमेषु नास्ति विशेष: कर्तव्य इति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ चत्वारिंशत्तमें शतके प्रथम संज्ञिपश्चेन्द्रियमहायुग्मशतं समाप्तम् ॥४०॥१॥२॥ ___टीकार्थ-'एवं एत्थ वि एक्कारस उद्देसगा' इस प्रथम शत में भी ११ उद्देशक हैं। इन में 'पढमो तइओ पंचमो य सरिसगमा प्रथम द्वितीय उद्देशक और पांचवा उद्देशक ये तीन एकसरीखे आलापकवाले हैं । और 'सेसा अट्ट वि सरिसगमा बाकी के आठ उद्देशक वितीय, चतुर्थ, षष्ठ, उद्देशक सप्तम, अष्टम, नवम, दसम और ११ वां ये आठ उद्देशक समान भालापघाले हैं। 'चउत्थ छट्ट अट्ठम दसमेसु नस्थि विसेसो काययो' चतुर्थ छठे आठ वे इन उद्देशको में कोई विशेषता कर्तव्य नहीं है 'सेव भंते ! सेव भंते ! त्ति' हे भदन्त ! आपका यह कथन सर्वथा सत्य ही है २। इस प्रकार कहकर गौतमने प्रभुश्री को वन्दना की और नमस्कार किया वन्दना नमस्कार कर फिर वे संघम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये। ४० वें शतक में संज्ञिपंचेन्द्रिय महायुग्म शत समाप्त हुआ ॥४०-१॥ एवं एत्थवि एक्कारस उद्देसगा' मा पा शतमा ५१४ ११ मशियार देशामा छ. तमा पढमो तइओ पंचमो य मरिखगमा' पडे। देश मा देशी અને પાંચમે ઉદેશે આ ત્રણ ઉદ્દેશાઓ સરખા આલાપવાળા હોય છે. અને 'सेसा अटू वि सरिसगमा' मीना मार देशा। मेले मान्न, याथी. છઠઠ, સાતમે આઠમ નવમ દશમે અને અગિયારમે આ આઠ ઉદ્દેશાઓ सरमा माताप छ. 'चउत्थ छट्र अटुमदसमेसु नत्थि विसेसो कायवो' ચે, છટ્ર આઠમે દશમે આ ઉદ્દેશાઓમાં કાંઈ પણ વિશેષપણું કહેલ નથી. _ 'सेव भते ! सेब भते ! त्ति' मगवन् भा५ पानुप्रियनु भा यन સર્વથા સત્ય જ છે, હે ભગવન આ૫ દેવાનુપ્રિયનું આપ્ત કથન સર્વથા સત્ય જ છે. આ પ્રમાણે કહીને ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને વંદના કરી તેઓને નમસ્કાર કર્યા વંદના નમરકાર કર્યા પછી સંયમ અને તપથી પિતાના આત્માને ભાવિત કરતા થકા પિતાના સ્થાન પર બિરાજમાન થયા. સૂ૦૧૫ ચાળીસમા શતકમાં સંસિ પંચેન્દ્રિય મહાયુમ શતક સમાપ્ત ૪૦-૧-રા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭

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