Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
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युक्ताः यावत् नो सेोपयुक्ता वा भवन्ति । 'कोहकसाई वा जाव लोभकसाई वा अकसाई वा' संज्ञिपञ्चेन्द्रियाः क्रोधकषायिनो वा लोभकषायिनो वा अकषायिनो या भवन्ति । 'इथिवेयगा वा, पुरिसवेदगा वा, नपुंगवेयगा वा अवेयगा वा' ते संज्ञिपञ्चेन्द्रियजीवाः स्त्रीवेदका वा भवन्ति, पुरुषवेदका वा भवन्ति नपुंसक - वेदका वा भवन्ति अवेदका वा भवन्तीति । 'इत्थि वेदबंधना वा, पुरिसवेदबंधगा वा, नपुंसगवेदबंधगा वा, अबंधगा वा' स्त्रीवेदबन्धका वा भवन्ति पुरुषवेदबन्धका वा भवन्ति नपुंसक वेदबन्धका वा भवन्ति अन्धका वा भवन्तीति 'सन्नी नो असनी' संज्ञिपञ्चेन्द्रियजीवाः संज्ञिनो भवन्ति नो असंज्ञिनो इस के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! आहारसन्नोवउप्ता, जाव नो सन्नो उत्ता' हे गौतम! ये आहार संज्ञोपयुक्त होते हैं यावत् नो संज्ञोपयुक्त होते हैं । 'कोहकसाई वा जाव लोभकसाई वा' ये क्रोध कषाय से लेकर लोभकषाय से युक्त होते हैं। तथा कपायों से रहित भी होते हैं । 'इथिवेयगा वा पुरिसवेयगा वा नपुंगवेयगा वा' ये स्त्री वेदवाले भी होते हैं, पुरूष वेदवाले भी होते हैं और नपुंसक वेदवाले भी होते हैं । तथा-'अवेयगा वा भवति' विना वेदवाले भी होते हैं । 'इत्थिवेदबंधगा वा, पुरिसवेदबंधगा वा नपुंगवेद बंधगा वा, अबंधगा वा' ये स्त्रीवेद के बन्धक होते हैं, पुरुषवेद के यन्त्रक होते हैं और नपुंसक वेद के भी बन्धक होते हैं। तथा इन तीनों वेदों के अबंधक भी होते हैं। 'सन्नी नो असन्नी' ये संज्ञी ही होते हैं असंज्ञी नहीं होते हैं। 'सईदिया नो अनिंदिया' ये सेन्द्रिय होते हैं इन्द्रियों से रहित नहीं होते हैं ।
रमा प्रश्नना उत्तरभां प्रभुश्री गौतमस्वाभीने उ छे है - 'गोयमा ! आहारसन्नोव उत्ता, जाव नो सन्नो उत्ता' हे गौतम! या आहारसज्ञोपयोगवाणा यावत् भय सज्ञाययोगवाणा होय हे 'कोहकसाई वा जाव लोभकसाई वा अकसाई वा ' આ ક્રોધ કષાયથી લઈને લેાભકષાયવાળા હાય છે, તથા કષાયથી રહિત सोय छे. 'इत्थवेयगा वा पुरिसवेयगा वा नपुंसगवेयगा वा' भास्त्रीवेद्दवाणा પણ હાય છે, પુરૂષવેદવાળા પશુ હોય છે, અને નપુસક વેઢવાળા પણ હોય ले. तथा 'अवेदगा वा भवति' तेथे वेदविनाना पशु होय छे. 'इत्थि वेदब धगा वा, पुरिसवेदबंधगा वा नपुंसक वेदबंधगा वा, अबंधगा वा' या स्त्रीवहना અધ કરવાવાળા પણ હાય છે, પુરૂષવેદના બધ કરવાવાળા પણ હાય છે, અને નપુસકવેદના મંધ કરવાવાળા પણ હોય છે. અને ત્રણે પ્રકારના વેઢાના अध नथी पशु उता 'सन्नी नो असन्नी' या संज्ञी ? होय छे. असंज्ञी होता नथी. 'सेइ' दिया नो अनिंदिया' मा ईन्द्रियोवाणा होय छे. इन्द्रिय
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭